Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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२०
वीरमदे सोनीगरारी वात वीरमदेरी हकीगत कहो। तरै पातसाह रांणगदेजीन डेरै तेडनै कह्यौ । तुम्हां कहते थे वीरमदेकी षबर न्ही । भेसा मारीया । हमरा बोलबाला हूवा। तुम्ह झूठा बोल्या सौ गुन्हां माफ कीया। अबै कागद भेजनै सताबीसुं बुलावो ।
उण भैसा लोह करणासुं रांणगदेजी बोहत वेराजी हवा ।
तरा पछै वेगम कह्यौ । हजरत रांणगदे भाग जायगा। तरै पातसाह वेडी सोरी देनै तगान मेलीयो । फेर कहीयो । जाबतो जादा करीयो । हिंदु काफर है । इनकै सुंसचालमै ठीक न्ही।
तिसै वेगम आदमी मेलीयो थो सो गढ देखनै आयो। कांगरा न हूवा छै। वेढरै वासतै' बार वरसांरा सांमांन दही दूध घिरत धान घास कोरड गल षांड तेल सोर सीसारा सामान कीधा । अमल तिजारांरा पूभा' कीधा छै । हमाम होदां टांकां' पाणी भरीजै छै । इसा साम[मा]नरी वात पातसाहनै साह वेगम कही।
अमल करणरी वेला बेडी लेने तगो रांणगदेजी कन्है1 प्राय ऊभो रह्यौ ओर कह्यो । पातसाहरो हुक्म छै । थे बैडी पहिरो।
तरै रांणगदेजीन घणौ सोच हूवो । तरै आसो चारण बोलोयो ।
१. तेडन -बुला कर। २. तुम्हां 'बुलावो - प्रस्तुत अंश पर खड़ी बोलीका प्रभाव दृष्टव्य है। ३. वेराजी-बे राजी, नाराज, रुष्ट । ४. वेडी मेलीयो- हलको बेड़ी देकर तगा नामक व्यक्तिको भेजा। ५. संसचालमै - ढोल रखने, चालचलनमें (?) ६. कांगरा-कंगरे, दीवार पर बनानेकी परंपरा रही है । ७. वेढरे वासत - लड़ाई के लिये। ८. सोर -बारूद। ६. पूभा- फोये, रूईके पहल, युद्ध में लगे घावोंकी मरहम-पट्टीके लिये। १०. टांका - भवनों में बने पानी संग्रह करनेके स्थान । ११. अमल करणरी वेला-अफीम लेनेके समय। १२. कन्है - पासमें। १३. ख. प्रतिमें यह पाठ इस प्रकार है-'अब सोनारा थाल माहे सोनारी बेडी पालि
तगौ ल्यायो।'
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