Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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वीरमदे सोनीगरारी वात तरै कानडदेजी कह्यौ । हम तो हजरतकै नोकर है ।' तरै पातसाह घणो हठ कीधो । तरै कानडदेजी कह्यौ नां हजरत मैं न जाणुं । वीरमदे जाणै । उणरी रजाबंधीरी वात छ । तरै पातसाह इनाम देनै वीदा कीधा ओर कह्यौ । सबां वीरमदेकुं ले पाईयो ।
कान्हडदेजी डेरे आया। रांणगदेजी वीरमदेजीने हकीगत कही। तरै वीरमदेजी कह्यौ। रावजी कबुलां न्ही तो पातसाह अठे हीज मारै । हूं पातसाहसु वात कर लेसुं ।'
प्रभात हवां कान्हडदेजी रांणगदेजी कंवर वीरमदे पातसाहरे हजुर गया। मुजरो करनै बैठा। तिसै फरमायो। वीरमदे तुम हमारी लडकी व्याहो । वीरमदे सलाम करने कह्यौ । हजु[ज]रत सलामत मे तो घररा धणी' रजपूत छां। साहिजादी मांहरां घरां लायक न्ही । पिण हजरत फूरमावै तौ सिर ऊपर कबूलायत छै । पिण जालोर जाय जांन करने' पातिसाहारै घरै आवां तिसौ म्हां कन्है' षजांनो न छ । तिणसु नाकारो' कीजै छ । ___इसो सुणने पातिसाह १२ लाष रुपीया दिराया। तीन वरसरी सीष दीधी। हिंदू गीराहमै परणावेंगे । सताब आईयो । सीष दीन्ही। १. ख. प्रतिमें यह पाठ है-पातिसाह दीन दुनीरा छो। हुं पादरीयौ घररौ धणी रजपूत
छु । पातिसाहारा सगा बलक रोम सुम विलायतरा धणी छ । हुं तौ बंदगी करूं छु। २. सबां' 'पाईयो - सबह (?) वीरमदेको ले पाना। 'पाईयो' ग्राम्य हिन्दीका विशेष
प्रयोग है। ३. कबुलां न्ही - स्वीकार न करें। ४. ख. प्रतिमें पातसाहके स्थान पर 'तुरकडो' पाठ है। ५. वात कर लेसु- बात कर लूंगा। ६. हजुर - दरबारमें। . ७. धणी - स्वामी। ८. सिर छ - सर पर धारण करने योग्य है, प्राज्ञा स्वीकार है। ६. जान करने - बरात चढ़ा कर । 'जान' शब्द संस्कृत 'यान' का अपभ्रंश है । १०. म्हां कन्है - हमारे पास । ११. नाकारो - मना, नांही। १२. हिंदू परणावेंगे - हिन्दू ग्रहोंमें विवाह करेंगे। १३. सताब - शीघ्रतासे ।
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