Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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वीरमदे सोनीगरारी वात
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हसीया । तरै कौ गोष' बैठी थांहरी जेठांणी छै । मांहरी असतरी छै । अबार वालो' समयो थो। तरै ग्राप दोड घर मा गई । हूं रस [ज] सुं भरीयो । तरां करवत लेतां मांग्या था सो आधा अंगरा आप हूवा छो । तरं जतन कीधा ।
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श्रागली असतरी सुणनें मेंहलसुं उतरने करवत लीन्हो | करवत तां कह्यौ । इणहीज भरताररी असतरी होयजो । इतरो केहत पांण धरती पडी सौ पडतां गायरो हाड पगै लागौ । सौ अलावदी पातसाहरै घरै जांमो पायो । साहूकाररा बैटाने कह्यौ थारी भोजाई नेम धार" करवत लोधो । तरै साहरै बैटौ [टे] करवत लेतां कह्यौ । मोटा रावजीरै घरै जांमो पावज्यो । इण असतरीरो वाड कांटो' देजो मती । देह छांडत पांण जालोर गर्दै कांनडदेजीरै कंवर वीरमदे हुवे । तिणसुं बंध |
तर वेगम पातसाहने प्ररज कीधी । मैरो व्याह वीरमदेसुं करो । भलां खूब है ।
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एक दीन पातसाह वषासमै विराजीया छै' । तिसै कांनsदेजी आया । पातसाह घणो सनमान देनें वतलाया " । कांनडदे वीरमदेने हमारी लडकी दीधी 11 |
१. गोबडे - झरोखे में ।
२. प्रबार वालो - अभी वाला, प्रभो जैसा ।
३. इतरो केहन पांण - इतना कहते ही ।
४. गायरो पगै लागौ - गायकी हड्डी पैरों लगी ।
५. जामो पायो - जन्म प्राप्त किया ।
६. नेम धारनं - नियम धारण कर ।
७. वाड कांटो सम्बन्ध-रूपी दुख ।
८. मैरो व्याह पूब है - इस श्रंश पर खड़ी बोलीका प्रभाव अवलोकनीय है । ख. प्रतिमें 'मेरो व्याह खूब है' के स्थान पर यह पाठ है -- 'मै वीरमदे सोनिगराने कबुल कीधो । मेरा व्याह निका करो। भरा षावंद सिरपोय जालोरका घणी है । पातिसाह
- वेगम तो हिंदु है। मेरी तरफ गाढ भांति २ सुं करिस्थं पिण मेलो तो दाईके हाथ है ।'
६. विराजीया छै - बैठे हैं ।
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१०. घणो वतलाया- बहुत श्रादर दे कर बातचीत की।
११. हमारी लडकी दीधी- अपनी लड़की दी, खड़ी बोली और राजस्थानी भाषाका मिश्रण अवलोकनीय है ।
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