Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 118
________________ वीरमदे सोनीगरारी वात [ ८५ हसीया । तरै कौ गोष' बैठी थांहरी जेठांणी छै । मांहरी असतरी छै । अबार वालो' समयो थो। तरै ग्राप दोड घर मा गई । हूं रस [ज] सुं भरीयो । तरां करवत लेतां मांग्या था सो आधा अंगरा आप हूवा छो । तरं जतन कीधा । I 6 श्रागली असतरी सुणनें मेंहलसुं उतरने करवत लीन्हो | करवत तां कह्यौ । इणहीज भरताररी असतरी होयजो । इतरो केहत पांण धरती पडी सौ पडतां गायरो हाड पगै लागौ । सौ अलावदी पातसाहरै घरै जांमो पायो । साहूकाररा बैटाने कह्यौ थारी भोजाई नेम धार" करवत लोधो । तरै साहरै बैटौ [टे] करवत लेतां कह्यौ । मोटा रावजीरै घरै जांमो पावज्यो । इण असतरीरो वाड कांटो' देजो मती । देह छांडत पांण जालोर गर्दै कांनडदेजीरै कंवर वीरमदे हुवे । तिणसुं बंध | तर वेगम पातसाहने प्ररज कीधी । मैरो व्याह वीरमदेसुं करो । भलां खूब है । 10 एक दीन पातसाह वषासमै विराजीया छै' । तिसै कांनsदेजी आया । पातसाह घणो सनमान देनें वतलाया " । कांनडदे वीरमदेने हमारी लडकी दीधी 11 | १. गोबडे - झरोखे में । २. प्रबार वालो - अभी वाला, प्रभो जैसा । ३. इतरो केहन पांण - इतना कहते ही । ४. गायरो पगै लागौ - गायकी हड्डी पैरों लगी । ५. जामो पायो - जन्म प्राप्त किया । ६. नेम धारनं - नियम धारण कर । ७. वाड कांटो सम्बन्ध-रूपी दुख । ८. मैरो व्याह पूब है - इस श्रंश पर खड़ी बोलीका प्रभाव अवलोकनीय है । ख. प्रतिमें 'मेरो व्याह खूब है' के स्थान पर यह पाठ है -- 'मै वीरमदे सोनिगराने कबुल कीधो । मेरा व्याह निका करो। भरा षावंद सिरपोय जालोरका घणी है । पातिसाह - वेगम तो हिंदु है। मेरी तरफ गाढ भांति २ सुं करिस्थं पिण मेलो तो दाईके हाथ है ।' ६. विराजीया छै - बैठे हैं । - १०. घणो वतलाया- बहुत श्रादर दे कर बातचीत की। ११. हमारी लडकी दीधी- अपनी लड़की दी, खड़ी बोली और राजस्थानी भाषाका मिश्रण अवलोकनीय है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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