Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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वीरमदे सोनीगरारी वात तरै मोजडी साह वेगमनै दिषाई। तरै छोकरीनै कह्यौ तिण कंवरनै देषने प्राव तरै उडदावेगण' वीरमदेने देषनै राजी हुई । सागै गेंहणी जलाल छै । पातसाहोमै हुवै तो वंनाउ । तरै छोकरीनै कह्यौ दरबार आवै तरै मोनै दिषावै।
तिसै दूसरै दिन दरबार पावतां वेगमनै विरमदे दिषायो। तिसै कंवरने देषनें सनेह जागोयो सो पुरबला भवरो षावंद छै । वांसल भवै कांसी वांणारसी माहैं एक साहूकार तीणरै एकाएक बेटो । जवांन हवो तरै परणायौ । तिस एक दिन संपाडो करतां मुंहडा आगै बहू उभी छै'। तिण समीयै अांधी आई। तिसै असतरी घर माहें गई। साहूकाररो डील रजसुं भरीयो। तरै जांणीयो असत्री मांहरा जीवरी न्ही । रीसमै उठनै कासी करवत छै तठै गयो। करवत लेतां कह्यौ। आधा अंगरो इणहीज साहूकाररै घरै पुत्र होज्यौ। डावा अंगरी अरधंग्या होयजो' । असत्री तो वेह हूई।1।। ___ उण साहूकाररै पुत्र उपनौ' । आधा अंगरी असत्री हूई सो परणीयो । एक दिन वलै1 संपाडो करतां अांधी आई । तिसै असत्री आपरा वसालसुं14 लपेटीयो। तरै साहूकार हसीयो। साहजो क्युं १. उडदावेगण - उडदा नामकी बेगम (?) २. सागै जलाल छै -- वास्तवमें गहाणी जलाल है। 'जलाल' एक राजस्थानी प्रेमाख्यानका नायक है। विशेष जानकारीके लिये 'मरुभारती' पिलानी. वर्ष ६
अङ्क ३ में प्रकाशित मेरा एतद्विषयक निबन्ध अवलोकनीय है। ३. पुरबला. 'षावंद छ - पूर्व जन्मका पति है। ४. वांसलै भवै - पिछले जन्ममें । ५. परणयौ - विवाह किया, (सं. परिणय) । ६. संपाडो करतां - स्नान करते। ७. मुंहडा' 'उभी छै - मुंह प्रागे बहू खड़ी है। ८. तर जाणीयो 'जीवरी न्ही - तब जाना स्त्री मुझसे प्रेम नहीं रखती। ६. रीसमै - रोषमें, कोवमें। १०. डावा. होयजो - बायें अंगकी अर्धांगी-स्त्री होना। ११. वेह हूई - विधवा हुई (?) १२. उपनौ - उत्पन्न हुआ। १३. वल - फिर। १४. वसालूसु- सालसे, दुपट्टे से।
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