Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात
[ ३६ जिका तो कयोन कीनौं। हर करड़ो ही उतर पाछो दीनों। कह्यो रावतजी म्हारै उपरै आयनै कासं षाटसी । म्हारी राड़ छै कालरी झाट सी । राणौंजी अरु सूबो में भी म्हांसु टाळो दे छ । वारी' धरतीमैं म्हे चाहा सो करां छा पण म्हारो नांव न ले छै । रावतजी- प्रांवणो छ तो बेगा कीजै असवारी। भली भांत मनवार करस्यां । अठै तो सदाई रहै छै जिण तिणसूं गोठरी तयारी । इण भांत उतर दे मेलियो । रावतजीरो हुकम माथै न झेलियो ।
सो सुण रावतनु अपरती रीस चढी । तिका रावत, तो आगे ही रीस चढी थी। ईण प्रागै कासू मैवासो नै कासूं गढ गढी थी । पण मोटारी आ ही रीत । चालै सास्त्र हीकी रीत। जिणमारणौ होय तिण-1 एक वार तो कहावै । समझ जाय तो भलाई नहीं तो सज्या" तो पावै ही पावै। ईण रीतरे वासते कहायो । न्ही तो उण- तो उणहीज बेळा रोस आयो। आ बात सुणता ही डेरा
१. कयो - कहा हुआ। २. हरदीनों - और फिर कठोर उत्तर ही दिया। ३. षाटसी - कमावेंगे, प्राप्त करेंगे। ४. म्हारी राह झाट सी - हमारी लड़ाई कालके झटकेकी भांति है। ५. राणौंजी अर सूबो- उदयपुरके महाराणा और मुगल-साम्राज्य के सूबेदार । ६. टाळो दे छ - टलते हैं, बचते हैं। ७. वारी- उनकी। ८. नांव-नाम। ६. बेगा - तुरन्त, जल्दी। १०. मनवार करस्यां - मनुहार करेंगे, युद्ध करेंगे। ११. गोठरी तयारी - गोष्ठिकी तैयारी। सम्मिलित प्रानन्द-भोजको राजस्थानमें गोठ
___ कहा जाता है। यहां युद्धसे तात्पर्य है । १२. मेलियो- भेजा। १३. न झेलियो - नहीं रक्खा, नहीं स्वीकार किया। १४. ऊपरती रीस - तेज क्रोध । १५. मोटारी - बड़ोंकी। १६. तिणन - उसको। १७. सज्या - सजा, दंड।
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