Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
View full book text ________________
४४ ]
प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात
बात ईण भांत नौबतिया' दो तरफां गड़ी गड़ी । उपड़बा लागी बगतरकी कड़ी कड़ी। हर नाचबा लागी बडी बडी। जिण भांत ढोलड़ी बागां नटनूं नच नची लागै । ईण भांत ईण बेळां रजपूतांरी रजपूतवट जागै । अब धावण ज्याका बधांवणां' । नांवड़ा उबारणां ।
१. ग. घ. प्रतियों में निम्नलिखित पद्य बातसे पूर्व अधिक हैंकवित्त - नाट वचन नां कहै, झाट दे षागां झोके ।
दाट देत दाळद्र काट रिम मारग रोके ।। थाट अरिद उथाल, षाट घालिया षिनायै । वाट लूटतां वेढ, लाट पर भोम लिया । जोधार इसा दाष जगत, इलमैं नाव उबारियां।
दाव लै घणां बंका दुरंग, तिके पांण तरवारियां ॥ १ सोरठा -रिण जंग वागां रोस, अण भंगरौ दीठो इसौ ।
'जिण रंग इसड़ो जोस, जांण भमंगज गावियौ ।। १ डारण समर अडोल, मारण चढयौ मैवासियां । तिण कारण पग तोल, बोल उबारण वसुमती ॥ २ अमर करण प्राषियात, समर लड़ण चढ़ियों सही।
मरण न भय तिल मात, डरण करणरी प्रापड़ी ।। ३ कवित्त - दारूरो गंज देख, मरद को अगन मिळावे ।
कोप्यौ केहर कोप. षांत करने षिजराव।। निरर्ष काळो नाग, पूंछ पर कुण पग मेले । रूठी होवे रुद्र, झाळ तिगरी कुण झेले । इण भांत पतौ रावत अभंग, वाचा सिध प्रोपे बयण ।
मेवास नास मेलूं मुकर, गुमर धार लागो गयण ॥१ २. नौबतिया - युद्धके नागरे । ३. गड़ी गड़ी - गड़गड़ाये, बजे। ४. उपड़बा लागी - उभरने लगो, उखड़ने लगो। ५. ढोलड़ी 'लाग - ढोलक बजने पर नटको नाचनको प्रबल इच्छा होती है । ६. रजपूतवट जागे - क्षत्रियत्व जागृत होता है। ७. धावण ज्याका बधावणा - दौड़ लगाते हैं अर्थात् वीरता प्रकट करते हैं उनको बधाई
दी जाती है। ८. नांवड़ा उबारणा - नाम उबारना, नाम अमर करना ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142