Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
View full book text
________________
६४ ]
प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात
I
कोई न लेसी । छत्रीधरमरै राह चालस्यौ तो थे हीज षावस्यौ । फेर किंणही गरीबने दुष दीया तो थांहरा किया थे हीज पावस्यौ अर मारया जावस्यौं । अब तो थांनुं छोडिया । ईण वासतै कोई असर for ही रैकी रह गई होय तो फेर पेटो करै डोडिया' ।
1
1
I
तिण उपरें डोडियां अरज कीधी । म्हानुं प्राप जीवदान दीधा अर चाकर कींधा । अबै तो रहस्या म्हे रावळो हुकम माथे पर लींधा । राजसूं लड़िया ईसड़ो कुण छै जिणनुं प्रासर रहै । राजरी रीस लै जिoरै दोय सीस होय जकौ सहै । हर तरवार है ।
1
ईणा ईण भांत अरज कीधी। रावतजी वानूं बिदा कधी । म्होकमसिंघ बुलाय षाथापणां प्रतोषीज्या र मनमें घणां रीज्या । घणो हेत कर गलगाय कह्यौ । म्होकम भाई सुनौं' हेट' हेट करें थांहरी रजपूती अधिकाई । सो एकसूं एक सवाई | पण बाबा थोड़ा धीरा' रह्यां करो | म्हांरो हुकम अर म्हे जिण बात मैं चैन पावां जिat मन मांहे घारया करो । तूं तो ईण भांत सदाई राड़ मैं षाथो बहै छै' । पण म्हारो जोब तोहीज मैं रहै छै सो तूं जायनै बषस । अर सुजस 1
लै
सोईणा रावत प्रतापसिंघरी सरकारसुं भी लेषणों दान दीधो । र परा घर मांहे छो सो तो सरब ही दीधो । सो ईणांरो तो सार मैं आचार घण घणो तिको कठा तांई को जावें । जिणारा प्रवाड़ारो' कुण पार पावै । निपट श्रमांमी प्रद्भुत अछूती रजपूतीरो
.10
१. आसर - शक्ति, इच्छा ।
२. पेटी करें डोडिया - डोडिया रजपूत फिर युद्ध कर लें ।
३. षाथपरणां प्रतोषीज्या - तेजीको वीरताको सन्तुष्ट किया।
1
४. मुनौं मुझको ।
५ हेट- धिक्कार ।
६. धीरा - धीरजसे ।
७. राड़मैं षाथो बहै छै - युद्ध में तीव्रता (वीरता) प्रकट करता है ।
-
८. लेषणौं- विशेष उल्लेखनीय ।
६. प्रवाज़ारो - प्रवादोंका, वीरतापूर्ण कामोंका 1
१०. श्रमांमी - बहुत, असीम ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org