Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 106
________________ वीरमदे सोनीगरारी वात [७३ राव लाषणसीजीनै पाछा परवांना लिषनै ओठिनै सीष दीधी । रावजीनै रसाल मेली'। घणो हेत हूवो। परवांना रावजी वाचीया षूस्याली हूई। एक दिन कान्हडदेजी कहीयो। प्रांपासु राव लाषणसीजी गुण कीधो । हि प्रांपें बाई विरमती दीजै तो भलाई ज छ । तरां राणगदेजी कह्यौ। माहाराज फरमावो सो प्रमाण छै । गढपती सगा छ। इसो आलोच करनै घोडा १५ नालेर २ सोना रूपारा परधान साथै प्रासांमी' १० ठावी देने जेसलमेर मेलीया । सो जेसलमेर पाया। रावजीसुं मालम हूई जे सोनिगरांरा नालेर आया छै । आ वात सुणनै रावलजीन घणो सोच हूवो। रावजी कहै म्है तो सोनिगरांसुं भलो कीयो थो पिण मांहरै ही गलामै डोर नांषी छै । हिवै ठाकुरे की करां । कैनै पूछां । तरै परधानै कह्यौ । रावलजी सलामत सोढीजीनै पूछीया"। हां साबास भली कहीया ।। १. मेली - भेजी। २. पुस्याली - प्रसन्नता। ३. गुण कीधो - गुण किया, भलाई की । ४. हिवै - अब । ५. प्रमाण छ - प्रमाण है, टोक है । ६. अालोच - विचार । ७. प्रासांमी - प्रादमी। ८. ठावी - मुख्य, विश्वासपात्र । ६. नांषी छ – डाली हैं । "माहर ही नांषी छ" के स्थान पर ख. प्रतिमें "माहिजे गले प्रलबद छौकरीरी न्हांषी" और ग. प्रतिमें "मांहिजै गळे अलवदौ छोकरीरो नांखियो" पाठ है। १०. हिवै 'पूछा - अब ठाकुरों ! क्या करें, किससे पूछे ? ११. सोढीजीने पूछीया - सोढी रानीको पूछिये । प्रागे ग. प्रतिमें यह पाठ है "मागे रावजीरे ऊमरकोटरी सोढी रांणी छ । तिका डोल माहै माती घांणीरे फेर छ । रूप बुढबी छ, पिण रावलजी सोढी के बस छै"तरै रावळजी कयौ, मां पूछां कि पाछा मेला तो मुंडा दोसां।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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