Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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वीरमदे सोनीगरारी वात सोनिगरीरै दोय बेटा हूवा । वीरमदेजी नै कागद आवै नै जावै । भाई बहनरे घणो हेत' छ ।
वरस १० वीता तरै वीरमदेजीरै छोटी बहन तिणरा नालेर दहीयांनै मेलीयां । साहो थाप्यौ । निबाजीनै चावल मेलीया। प्रोहितनै मेलनै बाई वीरमतीनै गढ जालोर ले आया। दिन ५ साहा आडा था तरै वीरमदेजीनै बहिन कह्यौ । थाहरा बैनोइनै बुलावो ज्युं थांहरै नै उणांरै चितषांत भाजै । मोनै अमर कांचली' दीधी।
तरै रावजीने पूछनै कुंगतरी मेली । निबोजी वाचेनै घणा राजी हूवा ओर पाछा कागल' लिष्या। तिणमै घणी मनवार लिषी नै वलै' कहीयौ। मोनै रजपूत लेषवीयो' पिण मोनै तो पंजू पायक आयनै ले जाये तो हूं मुजरो करूं । ___ इसा समाचार वीरमदेजीने कह्या। तरै पंजू पायकनें कह्यौ । थे सिधावो11 । निबाजीनें लै आवौ ।
तरै पंजू कयौ। थे देसोत छौ। मन माहै दगो राषो तो मोने मेलौ मती । पछै अांपणे रस15 रैहसी न्ही ।
१. हेत - हित, प्रेम। २. साहो थाप्यौ - विवाह लग्न निश्चित किया। ३. प्राडा था – सामने थे, शेष थे। ४. चितषांत भाज- मनोमालिन्य दूर हो। ५. अमर कांचली - अमर सुहाग । कांचळी अर्थात् प्राधी बांहकी चोली सुहागको
प्रतीक मानी गई है। ६. कंगतरी मेली - कुंकुंमपत्रिका, निमंत्रणपत्रिका भेजी। ७. कागल - कागज, पत्र। राजस्थानीका अन्य रूप कागद । ८. बल-फिर। ६. लेषदीयो - पालेषित किया, जाना। १०. मुजरो करू - अभिवादन करूं । ११. सिधावो - सिद्ध करो, चलो। १२. देसोत – देशपति । . १३. दगो - दगा, धोखा। १४. मोने मेलो मती - मुझे मत भेजना। १५. रस - प्रानन्दमय सम्बन्धसे तात्पर्य है।
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