Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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वीरमदे सोनीगरारी वात
॥० ॥ श्री गणेशाय नम [ नमः ] ॥ श्रथ वीरमदे सोनीगरारी वात लिष्यते ॥
गढ जालोर सोनीगरो वणवीर राज करै छै । वणवीरर्र कंवर २ हूवा | वडा कंवररो नाम कांनडदै । छोटो रांणगदै । टीकै कांनडदैजी सोनगीर' राज करै छै ।
एक दिन कानडदेजी सिकारने चढीया । सो साथ वीषर गयौ । आप जालोरसुं कोस ७८ ११ [ ७-८ ] उपर गया तिसै रात पडी । वास' १ बीजीयो कन्है' रहयो । रा []धी रात गई। रावजी उजाड पोढीया छै । तिस [ण ] समै कांमदेव जागीयो । तरै रावजी
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१. ६० - गुरुके साथ ६ श्री लगानेकी प्रथा रही है | ||०|| ६ श्री का प्रतीक और परिवर्तित रूप ज्ञात होता है। अंक ६को लिखिते-लिखते अलकृंत करने के प्रयत्न में "र्द०" रूप प्रचलित हो गया है । प्रथवा यह चिन्ह ॐका प्रतीक या परिवर्तित रूप है ।
२. वीरमदे - कथा - नायकका नाम है। यह वीरमदे "वीरवाण", अपर नाम वीरमायण नामक राजस्थानी काव्यके चरित्रनायक वीरमदेसे भिन्न है ।
३. सोनीगरारी - सोनीगरेकी । चौहान क्षत्रियोंकी एक शाखा "सोनीगरा" नामसे विख्यात है । जालोर दुर्ग जिस पहाड़ी पर निर्मित है उसका प्राचीन नाम सुवर्णगिरि कहा जाता है। सोनीगरा चौहानोंका मुख्य स्थान भी जालोर ही रहा । सुवर्णगिरिका अपभ्रंश > सोनगरा हुथा, जिसके प्राधार पर क्षत्रियोंकी सोनीगरा शाखा प्रसिद्ध हुई ।
४. ख. प्रतिमें "वात लिष्यते" के स्थान पर "वार्त्ता लिष्यते" पाठ है ।
ग. प्रतिमें "||०|| लिष्यते" पाठ नहीं है। संभवतः प्रतिलिपिकर्ताको प्रसावधानीसे छूट गया है।
५. सोवनगीर - सुवर्णगिरिका ( ? ) ।
६. षवास - पास में रहने वाला सेवक । ७. कन्है - साथ में, पासमें ।
८. पोढीया छ - सोये हैं ।
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