Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात इण भांत म्होकमसिंघ देष हंसनै चल्यो गयो। मूढातूं' तो काई बात न कही। पण मरजीदांन' था जिकां मनरी लही। म्होकमसिंघ गढ देषतां ही उड पड़सी। पर ईणरै माथै घणौं अमांमौं सीरोहीयांरो फूलधारांरो बाढ झड़सी । म्होकमसिंघ डेरे जाय जांगड्या अर ढाढी गवाया। जको मरजीदांन जिकां केयक षंमायची अर केयक सीधूरा दूहा सुणाया। तिण बेळां साथ्यारै छक प्रावै छै । तोणांनु दूणां त्यौणा अमल करावै छै' अर म्होकमसिंघरा मनकी उमंग न मावै छै । उण बेळारो रूप अर चोप देष्या ही बणि आवै छै। ज्यौ छकियौ छैल पर गैलरा साथियांनुं चौंप चाव चितावै छ । ईण भांत हंसतो हंसावतों उमंग उफणावतो थको निपट ताता झांप षाता टापां उपर टापां देता कांछयां पर चढचा' । अरु फोजसू बढया जिका घोड़ा असवारांरो रंग ईसो नजर आवै। प्रागै गढ तो कितेक बात पण दावागीरनै तो उरसमैं जाय झपट ल्यावै। तिको उरसरा खेलणहार। गढांरा भेळणहार । अणपूछिया ही दीसै1 । राड़रा म्होरी अहीज होय बिसवा बीस । तिको प्रो तो सदाई कवांरी घड़ारो भेळणहार । रिणरो रिझवार । चवरी उपर बींद जाय जिण भांत
१. मूढासू- मुंहसे। २. मरजीदांन - कृपा-पात्र । ३. घणौं झड़सी - अनेक तलवारोंका असीम प्रहार होगा। सीरोही और फूलधारा
तलवारोके भेद हैं। ४. जांगड़यां पर ढाडी - जांगड़ और ढाढ़ी, राजस्थानको विशेष गायक जातियां हैं। ५. केयक' 'सुरणाया – कई खमायची और कई सिंधू रागके दोहे सुनाये । ६. छक - तृप्ति । ७. अमल करावै छै – अफीम खिलाते हैं। ८. पर गलरा' चितावै छ - पीछे रहने वाले अर्थात् निरुत्साही साथियोंमें उत्साह
और चाव प्रकट करते हैं। ६. निपट ताता चढ्या - निपट तेज, झांप खाने वाले और टापोंका प्रहार करने वाले
कच्छी घोड़ों पर सवार हुए। १०. पण झपट ल्याव - किन्तु विरोधीको तो प्राकाशमें जाकर भी झपट लावें। ११. भेळणहार - नष्ट करने वाले। १२. दीस - दिखाई दें। १३. राडरा' 'बीस-मानो युद्ध में अग्रणी वास्तव में यही हो। १४. कवांरी घड़ारो- नहीं लड़ी हुई, अछूती सेनाको।
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