Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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३२ ] प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात दसतूर जिकाही बसत वा आदमी दोढीमैं जाय जिणांनू देखनै जाबा देवै । घणौ हाजर रहै। किणहीसू स्याहजादो छांनौ बात करै तद भो भी आय कान देव । स्याहजादाकी दोढी प्र घणो तकरार करै । स्याहजादो ईणनूं तकरार कर कहै । थे तकरार करो छो पिण कैदी पातसाह वा कैदी स्याहजादांरो दसतूर छै । हूं सोबो साधू नै सरहद बांधू । तिणरी दोढी पर तकरार न षटावै । अठै तो केई तरैका जुवाब साल पावै।
इण तरह मन कीधो' तो भी न मानी। प्रो तो राषै अवरंगजेबकी मरजीदांनी । तरां स्याहजादै उकीलांन' लिष तलास कर इणनूं तगीर करायो । सो पातसाह कनै जाय बहाल होय वाहीज षिजमत" लेर फेर उठे हीज आयो। तिण- पावतो सुण स्याहजादै माथौ धूण्यो नैं सिरबिलंदषांना कहियो। प्रो नाजर पावै छै । ईण- मारो । पण पातसाह न जांण तिका तरह बिचारो । तरै स्याहजादारो हुकम माथै धारियो । नै धीर जमीदार हुँतो तिणरौ नांव
१. बसत - वस्तु, चीज। २. दोढीमैं – ड्योढ़ीमें, द्वारमें। महल अथवा घरके मुख्य प्रवेश द्वारको डचोढ़ी कहा ___ जाता है । क्योंकि इनमें मुड़ कर भीतर जाते हैं, सीधे नहीं। ३. छांनी- छिप कर, गोपनीय । ४. दोढी प्र[पर] धरणो तकरार कर - ड्योढ़ी पर बहुत तकरार करता है। ५. न षटावै - नहीं निभती। ६. जुवाब साल - जवाब-सवाल, प्रश्नोत्तर । ७. मनें कीधो- मना किया। ८. मरजीदांनी - कृपापात्रता। ६. तरा- तब। १०. उकीलांन - वकीलोंको। ११. तगीर करायो- बुलाया। १२. वाहीज षिजमत - वही खिदमत, वही सेवा । १३. माथौ धूण्यौ - सिर धुना। १४. सिरबिलंदषांनु - शेर बुलंदखांको। यह प्रोरंगजेबके शाहजादे मुअज्जमके द्वितीय
पुत्र अज़ीमुश्शानका एक सेवक था। १५. नांव-नाम।
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