Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात
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दृज्यू' उणरी रजपूती
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तिका भीलांरा माथा काटि रावत प्रतापसिंघरा हाथ्यांरा मूढा प्रागें नषाय दीया " । सो ईसड़ा तो चोष तीषरा तमासा म्होकमसिंघ किताई कधा । र ईण भीलड़ारा प्रवाज़ारी बात म्होकमसिंघरी जिताई # सो तो एक चोष तीषरी बात याद आई । दीठां प्रो तो कांसूं' प्रवाड़ी । उणारा तो असंक प्रवाड़ा पण ईण बात मांहे येक ही चाव | ज्यू माठारै बागै चांमठी तातारै लागै घाव " । ईण भांत उण रजपूतनूं पोतारतां नै तीष चोषरो बचन उचारतां " ईणरै तीषरो वचन जाय लागो । तिणसूं अंगो अंग जाय बागो । ज्यू प्रो तो बडी बडी बातांनू बाथ मारे - " । जे प्रका षड़हड़े -" तो एक बार तो आधार । जिणरै बड़े भाई बीजनुं कटारी बाई 14 ईणरी मनमैं तो उणसूं ही तोष सवाई | तिण समैं पातसाह अवरंगजेब पातसाही करें । तिण दोय तीन पातसाहांनु तो पकड़
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धा । श्रर कितराहेनुं पकड़ण अर मारणरा दाव दीधा । तिणरी धाक ईरान तूरांन रूमस्यांम फिरंग रूस चीन्ह म्हाचीन्ह'' ईण देसादेसांरा पातसाह ईणरा हुकमरा ग्राधीन सारा डरै । परहरै " । डंड भरें '
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१. हाथ्यारा प्रागें - हाथियोंके मुंह प्रागे ।
२. नषाय दीया - गिरवा दिया ।
३. प्रवाज़ारी - प्रवादकी, युद्धकी।
४. जिताई - विजितकी, जताई, बताई ।
५. दूज्यू - यों फिर दूसरी बात है है कि...।
६. दीठां - देखने पर ।
७. कांसूं - क्या, कौनसा ।
८. माठारै घाव - एक कहावत, जिसका तात्पर्य है कि व्यंग्यपूर्ण बात शान्त offeet छड़ीकी भाँति लगती है किन्तु तेज व्यक्तिके उससे घाव हो जाता है ।
६. पोतारतां - प्रोत्साहित करते हुए, 'हाथियों को पोतारना' प्रसिद्ध है ।
१०. उचारतां - उच्चारण करते हुए, बोलते हुए ।
११. बाथ मारे - हाथ में लेना, सर पर लेना ।
१२. षड़हड़े - टूट पड़े |
१३. आधार - आधारित कर ले, रोक ले ।
१४. बीजनुं बाई - बिजली पर भी प्रहार किया ।
१५. म्हाचीन्ह - लेखकका तात्पर्य संभवतः हिन्द चीनसे है जो दक्षिण-पूर्वी एशिया में है । १६. परहर - भागते हैं ।
१७. डंड भरे - जुर्माना देते हैं ।
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