Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 32
________________ [ २३ ] कथानों में ही परिलक्षित होता है। भारतीय कथा-लेखकोंको पश्चिमी कथा-शैलीके अन्धानुकरणको छोड़ कर ऐसी ही भारतीय कथाओंसे मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिए जिससे वे भारतीय मौलिकताको रक्षा करते हुए अपनी रचनाओंकी अनपेक्षित विदेशी प्रहारसे रक्षा कर सके । ७. पश्चिमी शैलीमें लिखित कथाएं ८-१० वर्षों में ही समयके विपरीत 'असामयिक' हो जाती हैं किन्तु ऐसी राजस्थानी कथाओंका सौन्दर्य एवं आकर्षण सैकड़ों ही वर्षोंसे बना हुआ है। आधुनिक युगको संक्रान्तिकालीन परिस्थिति एवं चकाचौंधमें भी प्रस्तुत कथाएं पाठकोंका मनोरञ्जन कर उन्हें उद्देश्यके अनुरूप प्रभावित करनेकी क्षमता रखती हैं। श्रेष्ठ कलाकृति सदा ही प्रभावशाली बनी रहती है। ऐसी कथाओं की श्रेष्टताका इससे अधिक क्या प्रमाण हो सकता है ? ८. इन कथाओंसे पाठकोंका कोरा मनोरञ्जन ही नहीं होता वरन् जीवन-क्षेत्रमें कर्तव्यपरायणता, कष्टसहिष्णुता, आत्मत्याग एवं बलिदान, सत्यनिष्ठा, वीरता, वचननिर्वाह, विद्याप्रेम, नीतिमत्ता, कौशल, कलाप्रेम और न्यायप्रियता आदि सद्गुणोंकी सहज प्रेरणा भी प्राप्त होती है । आधुनिक पश्चिमी शैलीकी कथाओं में प्रायः ऐसे तत्त्वोंका अभाव होता है । ९. राजस्थानी कथानों में प्रसङ्गानुसार पद्यांश देनेकी प्रवृत्ति भी परिलक्षित होती है । प्रस्तुत कथाओं में भी यथाप्रसङ्ग एवं यथास्थान पद्यांश लिखे गए हैं और इनसे कथा-प्रवाहमें अपेक्षित प्रभाव उत्पन्न करने में लेखकोंको सहायता मिली है । १०. इन कथानोंमें पात्रोंका चरित्र-चित्रण और घटना-संगठन पूर्ण मनोवैज्ञानिक रीतिसे हुआ है। घटना-विशेष अथवा चरित्र-विकासके पूर्व कारण स्पष्ट हो जाते हैं जिनसे पाठकोंको किसी प्रकारको अस्वाभाविकताका बोध नहीं होता। ११. रूप-वर्णन और दृश्य-चित्रणमें लेखकोंको विशेष सफलता मिली है । ऐसे प्रसङ्गोंके अवसर पर लेखकोंने चित्रकार जैसी सूक्ष्म अभिव्यक्तिका अवलम्बन लिया है। वस्तु-नाम परिगणनासे कहीं-कहीं ऐसे शब्द-चित्र बोझिल अवश्य बन गये हैं किन्तु परम्परानुसार ऐसे प्रयोग पाठकोंको अरुचिकर नहीं प्रतीत होते । १२. कथा अथवा कहानीको प्रमुख विशेषता यह है कि उसको सुन कर भी प्रानन्द प्राप्त किया जा सके । कहानीसे तात्पर्य यही है कि वह कही जा सके। प्रस्तुत राजस्थानी कथाएं इस कसौटी पर भी खरी उतरती हैं क्योंकि इनको मौखिक परम्परासे ही हमारे लेखकोंने प्राप्त किया है। ऐसी हजारों कथाएं हमारे विद्याप्रेमी पूर्वजोंके प्रशंसनीय प्रयत्नोंसे लिपिबद्ध हुई थीं और हजारों कथाएं अब तक मौखिक परंपरासे प्रचलित हैं। राजस्थानी कथा साहित्यमें भारतीय ज्ञान-विज्ञानका प्रखण्ड कोष आज भी सुरक्षित है और यह इस वैज्ञानिक युगमें प्रकाशनको प्रतीक्षा करता हुमा धीरे-धीरे कालके कराल गालमें समाता जा रहा है, इसलिए सम्बद्ध समस्त व्यक्तियोंको तुरन्त ही तत्परतासे प्रयत्नशील हो जाना चाहिए। १. क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैति तदेव रूपं रमणीयतायाः । --कालिदास, अभिज्ञान-शाकुन्तल। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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