Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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[ २१ ] "१७७८ -- चहुवाण कान्हड़दे सांवसिंघरो बेटो जिण संवत १३६८ वैसाख सुद६ गुरुवार
जाळोगढ़ साको कियो । १७८० - सांचोर १, थिराद २, काकरणधर ३, वाराही ४, कछ ५, गेहड़ी ६, ऊमर
कोट ७, वीकमपुर ८, जैसलमेर ६, वधनोर १०, पारकर ११, पूगळ १२, मारोठ १३, साळकोट १४, जांगळू १५, जाजासहर १६, सारण १७, हांसेर १८, वावरो १६, सोजत २०, डोडियाळ २१, रीणक २२, काछेल २३, त्रिसींगड़ो २४, प्राबू २५, भीलड़ी २६, सिवाणो २७, तारंगो २८, राङद्रह २६, इंधो ३०, मेहवो ३१, भाद्राजण ३२, मंडोवर ३३, सूराचंद ३४ इत्यादिक
ठिकाणांसू कान्हड़दे भड़ तेडाया । १७८१ - सोनगरा कान्हड़देसू जाळोररा महाजनां अरज कीवी । रामो साफड़ियो
बोलियो - मूग चोखा जव काठा गेहूं साठ वरस ताई हं पूरीस । जैतसी दोसी कहे - कपड़ा साठ वरस हूं पूरीस । भोळे साह कयौ - असी वरस तेल हूं परीस मोलहण साह बोलियो-तीस वरस इंधण हंपरीस। भीमै साह कहयोम्हारै इतो गुळ है, अठार वरस ताई ढीकली गुळरा होज गोळा चलावो ।
सादू साह कहै - म्हारै दहीरा पहल भरिया है। १७८२ - जाळोररो गढ़ दहिये वीक भेळायो अलाउद्दीनरा नायबांसूमिळनै । १७८३ - सोनगरा कान्हडदेरा भड़- भाई मालदे १, बेटो वीरमदे २, जैत वाघेलो ३,
जैत देवड़ो ४, लूणकरण माल्हण ५, सोभित देवड़ो ६, अजैसी ७, सहजपाळ ८,
इत्यादिक ।"1 मुहता नैणसीरी ख्यातसे भी वार्ताके उत्तरार्द्ध का पूर्णरूपेण समर्थन होता है । साथ ही जालोर टूटनेकी तिथि 'सं० १३६८ वैसाख सुदि ५ बुधवार' दो गई है। युद्धमें मारे जाने वाले प्रमुख योद्धानोंके नाम भी 'सोनगरा जाळोररा धणियांरी ख्यातवार्ता' के आधार पर दिये गये हैं।
इस वार्तामें अलाउद्दीनको बहुत उदार और हिन्दुनोंके प्रति सहानुभूति रखने वाला लिखा गया है । वास्तवमें वार्ताका लेखन मुगल सम्राट अकबर अथवा जहांगीरकी उदारतासे प्रभावित है। इसीलिये अलाउद्दीनके लिये 'पातसाहिजी' जैसा सम्बोधन है और उसके 'सिरोपाव' देनेका तथा कान्हडदे द्वारा उसके संमुख 'पातिसाह दीन-दुनीरा छो। हं पारियो घररो धणी रजपूत छू' प्रादिका उल्लेख है। प्रस्तुत वार्तासे स्पष्ट होता है कि मुगलकालके मध्य में हमारे अनेक लेखक अलाउद्दीनके अत्याचारोंको भूल चुके थे और हिन्दुनों एवं मुसलमानोंके बीच पारस्परिक सौहार्द-सम्बन्धोंको दृढ़तर करने में संलग्न थे।
१. वांकीदासरी ख्यात, संपादक, श्रीयुत् नरोत्तमदासजी स्वामी, राजस्थान प्राच्यविद्या
प्रतिष्ठान, जोधपुर, पृष्ठ १५० । २. मुंहता नैणसीरी ख्यात, भाग १, संपादक, श्रीयुत् बदरीप्रसादजी साकरिया, राज
स्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर, पृष्ठ २१६ से २२६ ।
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