Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 52
________________ [ १६ प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात बात ईण भांतरो रावत परतापसिंघ। जिणरे छोटो भाइ म्हौकमसिघ। जिको किसडोहेक रजपूत । आग ब्रजाग । ताषो नाग । षाग नै त्याग बिषै जगहीसों बढती बाग । रीज पर सारो ही त्याग । कई बार निकल्यौ कवांरी घडामै कढि । समहर भडांसू बढि । धड़ारो धणी पण कई बार अकेलो ही लोहां मिल्यौ' । सोरमै पण रंजक । तिण भांत रजपूतीरी तीषरो तष भष । तिणरो रजपूतीरी तीष। तिको धणी तीषांन1° पण सोष। रेवणनै राड़ पाया थका बधाई बटै। अर बिलकुल नै घणो तातो मिलै । प्रिथिमै घड़ी पिल्लरो11 मिजमांना हवो थको झिलै । दौहा-मरण गिरण तिल मान", हाथ जीव हाजर रहे। ____ो घट"घाट" प्रताल, निराताल न्हा निडर ॥ १ १. बात - ग. घ. प्रतियों में दवावत । २. आग ब्रजाग -- अंगोंमें वज्रकी भांति तेज धारण करने वाला। ३. ताषो- तोष्ण, तेज । ४. पाग नै त्याग बिषे - शस्त्र-सञ्चालन और दानके सम्बन्धमें। ग. प्रतिमें "षागने त्यागरै बिष ताषो नाग" पाठ है । ५. रीज - रोझ, प्रसन्नता। ६. समहर - समान। ७. लोहां मिल्यौ - शस्त्र-धारण कर अथवा शस्त्रधारियोंसे युद्ध किया। लोहेसे तात्पर्य ८. सोरमै पण रंजक - युद्ध में भी प्रानन्द लेने वाला। ६. तष भष - सज-धज । १०. तीषांन -तेज लोगोंको, वीरोंको। ११. घड़ी पल्लरो - घड़ी पलका, थोड़े समयका। १२. मिजमान - मेहमान । १३. झिल - शोभित होता है। १४. तिल मान - तिल मात्र, तिल बराबर, सामान्य । १५. हाथ जीव हाजर रहे - प्राण सदा हाथमें लिये रहता है, मरनेके लिये सदा प्रस्तुत रहता है। १६. घट - शरीर । १७. घाट - स्थान । १८. अताल, निराताल - शीघ्र, बहुत । १६. न्हाष - डाल देता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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