Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
View full book text
________________
प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात [ २५ परष भी लहो छो। कहो छो रावत हरीसिंघरा घर मांहे ईसड़ो रजपूत नही सौ उण भीलडैनु मारै । सो दीवाण तो छत्रपती छो पण उणरा घर माहे बी सषरा' सषरा रजपूत छै जिके उणने अकेलो पैठ अर अंगो अंग मारे । अर बात उबारे । ___ ईण तरै सुणनै जिण बेळारो म्होकमसिंघरो जोस नै रोस देष
रावतजी बोलिया। बाप बाप हूं थानुं तो न कहू छू । हूं तो म्हारा पिंडरी कहू छु ।
इतरी कह मोहकमसिंघनु थथोपियो । पण प्रो तो कोपियो सो कोपियो। मुंहडै अण-मापरो रोस ब्यापियो । मन मांहि भीलड़ेनुं मारणरो दाव रोपियो । ईण संकोचसू बोलियो तो नही। जाणियो दीवाण जावण न देसी । हर' जाणसी जाय छै तो ही गया थकां पाछो बुलाय लेसी । ईण भांत दिन पांच सात प्राडा घातनै एक तो साथ रजपूत अर येक चाकर सो भी मजबूत । दोय आदमी साथ लेनै जिण मैवासामै भील रहतो तठे ही आप जाय पहौंतो' । __ पछै रावतजी- षबर हुई सौ पाछो बुलावणरो तलास तो घणो ही कीधो । पण ईणरो सोध किण ही न लीधो।
१. परष - परीक्षा । परख<परक्ख. परीक्खा <परीक्षा। २. सषरा - श्रेष्ठ । ३. जिरण बेळारो- जिस समयका। ४. म्हारा पिंडरी- मेरे शरीरकी, स्वर्षकी । ५. थथोपियो - स्थिर किया, शान्त किया। ६. मुंहडे - मुंह पर । ७. ब्यापियो - व्याप्त हुना, फैला । ८. रोपियो - निश्चित किया। ६. जावरण न देसी - जाने नहीं देंगे। १०. हर - और। ११. प्राडा घातन -- सामने डाल कर, व्यतीत कर । १२. मैवासाम - वन प्रान्तमें, जंगल में । १३. तठे हो - वहीं । १४. पाँतो - पहुंचा। १५. सोध - शोध, खोज।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org