Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 27
________________ [ १८ ] है। इसी प्रसङ्गमें काशीके साहूकार पुत्रको एक अन्तर्कथा भी दी गई है । विवश होकर अलाउद्दीनको भी उक्त विवाहके लिए अपनी सहमति देनी पड़ती है । __ तदुपरान्त कान्हडदे और वीरमदे विवाह-खर्चके नामपर प्रचुर धन ले कर जालोर आते हैं और दुर्ग-निर्माणके साथ ही युद्धकी तैयारी करते हैं। राणकदे थोड़े समय पश्चात् तगा मुगलको मारकर शाही नजरबन्दीसे अपने देववंशी घोड़े झीथड़े पर सवार हो जालोर भागता है। इसी बीच झीथड़ेके मरनेकी और भैसेको अन्तर्कथाएं दी गई हैं। बलखके बादशाहने दिल्ली एक मोटा भैसा भेजा, जिसके सींग बढ़ कर पीठ तक आये हुए थे। बलखको सूचनाओंके अनुसार दिल्लीका कोई भी अमीर इस भैसेको झटकेसे नहीं मार सका । लौटते समय जालोरके निकट वीरमदेने अपने पराक्रमसे भैसेको सींग सहित काट दिया । तदुपरान्त अलाउद्दीनकी चढ़ाईका और जालोरमें युद्धको तैयारीका वर्णन है । बारह वर्ष जालोरका घेरा रहा किन्तु दुर्ग अजेय रहा। दुर्ग वालोंने एक युक्ति की। वीरमदेकी कुतिया ब्याई थी, उसके दूधसे खीर बनव ई और पत्तलोंके लगा कर नीचे शत्रुओंको ओर गिराई। सुलतानने देख कर सोचा - अभी तक तो दुर्ग वाले खोर खाते हैं। यह दुर्ग नहीं जीता जा सकता। इस प्रकार अलाउद्दीन घेरा छोड़ कर पुनः दिल्लीकी ओर चल पड़ता है। प्रागे कथा पुनः एक नवीन मोड़ ग्रहण करती है । वीरमदे और इसके बहनोई दहियाराजपूतके प्रीतिभोजमें कहा-सुनी हो जाती है। भूल वीरमदेकी होती है, क्योंकि वह एक अपराध मार कर लटकाये हुए दो दहियोंकी अोर सङ्केत कर अपने बहनोई दहियासे व्यंग करता है। दहिया राजपूत जाकर अलाउद्दीनसे मिलता है और वह पुनः लौटकर दुर्ग घेर लेता है। तदुपरान्त वाघा वानर प्रादि राजपूतोंके वीरतापूर्वक युद्ध और दुर्गके विजित होनेका वर्णन है। वीरमदे युद्धके अन्तमें पकड़ा जाता है किन्तु उसने अपना पेट काट लिया था, अतः मृत्युको प्राप्त करता है। शाहजादी हिन्दूरीतिसे वीरमदेके मस्तकको गोद में ले कर सती होती है और इसके साथ ही कथा पूर्ण की जाती है । उक्त जालोर - युद्धके विषय में प्राप्त प्राचीनतम राजस्थानी-प्रबन्ध कवि पद्मनाभविरचित 'कान्हडदेप्रबन्ध' है। इस काव्यमें जालोर-युद्धका मुख्य कारण अलाउद्दीनकी सेना द्वारा गुजरात पर आक्रमण करना और सोमनाथ मन्दिरको तोड़कर मूर्तिको दिल्ली लेजाना बताया गया है। इस सम्बन्ध में कान्हडदेकी प्रतिज्ञा इस प्रकार है-- करी प्रतग्या राउल कान्हडि - तउ जिमीसइ धान । मारी मलेछ देव सोमईउ अनइ छोडाविस बान ॥ १८२1 'मुंहता नैणसी द्वारा भी उक्त मतकी पुष्टि होती है 'पातसाहरो डेरो सकरांणे जालोररै गांव जालोरसू कोस ६ हुवो । प्रा खबर कानड़देनू हुई जु महादेव सोमइयानू बांधने पातसाह सकरांण प्राय उतरियो; तरै पातसाह १. कान्हडदे प्रबन्ध, पृष्ठ ३८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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