Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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प्रस्तुत वार्ता एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक घटना पर आधारित है किन्तु इसके विकास-क्रममें कल्पना एवं कथानक रूढ़ियोंका भी प्रचुर प्रयोग किया गया है। कथाके प्रारंभमें ही एक प्रस्तर पुत्तलिकाके अप्सरा रूप प्राप्त करने पर पाठक चमत्कृत हो जाते हैं। तदुपरान्त कान्हडदेके अप्सरासे विवाह और कुमार वीरमदे उत्पन्न होने, अप्सराके पुनः अन्तर्ध्यान होने, जैसलमेरके भाटो रावल लाखणसीजी द्वारा सूचित होने पर कान्हडदेके विषपानसे बचने, कान्हडदे द्वारा अपनी कुमारीका रावल लाखणसौजीसे विवाह करने आदि घटनाओंका वर्णन हुआ है । __ रावल लाखणसीजी अपनी प्रथम रानी सोढीके कहने में आ कर विवाह के समय सोनीगरोंको अपने अनुचित व्यवहारसे रुष्ट कर देते हैं। सोनीगरी राजकुमारी भी "हथलेवो तो सोनोगरीरो सपरो पीण सोढीरो होड न करै।" सुन कर लाखणसीजीसे रुष्ट हो जाती है
और श्वसुरालय जाते समय परम वीर नींबा सिवालोत द्वारा हरण कर ली जाती है। आगे लाखणसीजी द्वारा लोहारोंको आज्ञा दी जाती है --
'इसो भालो घड़ो तिणसुएथ बैठा निबलानं मारा।' कहने मात्रके लिए भाला तैयार होता है किन्तु एक प्राशङ्का रहती है कि रावलजी वृद्ध हैं और नींबा युवक है। यदि कई मील दूरीसे मारे जाने वाले भालेको नींबा छीन कर पुनः वार कर देगा तो क्या उपाय होगा? पुनः लोहारोंको पारिश्रमिक दिया जाता है और जो भाला बना ही नहीं है, उसको तुड़वाये जानेकी प्राज्ञा दी जाती है। इस प्रकार
'रावलजी सोनिगरी गमाय बैठा ।' कथामें प्राप्त उक्त हास्य-प्रसङ्ग से पाटकोंका अनायास ही मनोरञ्जन हो जाता है।
प्रागे वीजड़िया सेवक, जिसका पिता राजड़िया नींबाजी द्वारा सोनीगरी-हरणके अवसर पर हुए संघर्ष में मारा जाता है, नींबाजी पर प्राणान्तक प्रहार करता है और नींबाजी भी मरते-मरते वीरतापूर्वक वीजड़ियाको मार गिराते हैं ।
घाव-दाव सिखाने वाला पजू पायक वीरमदेका विश्वासपात्र शिक्षक था और इसके द्वारा ही नींबाजी कान्हडदेके यहां उनकी दूसरी राजकुमारीके विवाह में सम्मिलित हुए थे, जहां उनको विश्वासघात कर मार दिया गया था। इस घटनासे वीरमदेके वीरचरित्र पर कलङ्क ही नहीं लगता वरन् यह घटना जालोर-पतन और सोनीगरोंके विनाशका मूलकारण भी बनती है। पंजू पायक रुष्ट होकर तत्कालीन दिल्ली-सुलतान अलाउद्दीनके पास पहुंच जाता है और अपनी विद्याका प्रदर्शन करता है। यहीं अलाउद्दीन पंजूसे प्रसन्न होकर पूछता है कि तेरे बराबर खेलने वाला कोई दूसरा भी है ? ___पंजू उत्तर देता है कि जालोरके राव कान्हडदेका पुत्र वीरमदे मुझसे सीखा हुआ है किन्तु मुझसे भी बढ़कर है। यह सुनने पर अलाउद्दीन वीरमदे को दिल्ली आमन्त्रित करता है। वीरमदेसे खेलते हुए पंजू पायक मारा जाता है। वीरमदेको रण-चातुरी प्रसिद्ध होती है। इसी अवसर पर अलाउद्दीनकी पुत्री, जिसका नाम नहीं दिया गया है, वीरमदेसे अपना पूर्व-भवका वैवाहिक सम्बन्ध बताती हुई वीरमदेसे विवाहकी इच्छा प्रकट करती
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