Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 7
________________ । प्रस्तावना wwwwwww.amaniasawaimwanwwwww nawwamwammawaiseDimininemarcasmame भारतीय वाङमय में जैन वाङ्मय का एक विशिष्ट स्थान है। अम मनी. षियों, माचार्यों यादि साहित्य-सड़कों ने प्रायुर्वेद, ज्योतिष, इतिहास, भूगोल, गणित. काव्य, मोति, संगीत, वर्शन न्याय, कला, पुरातस्त्र, अश्यात्म यादि सभी विषयों पर अपनी गंभीर, सरस और प्रौढ़ लेहमी चलाई है। जैन वाङ्मय की एक विधा है 'पुराण-साहित्य । इसमें बोधीस तीर्थक, बारह चक्रवतियों, नो नारायणों, नौ प्रतिनारायणों और नौ बलदेशों इस प्रकार वेसठ शलाकापुरुषों (जैम परम्परा में मान्य प्रसिद्ध महापुरुषों) का विस्तृत जीवनचरित, उनके पूर्वभव प्रादि का वर्णन होता है । माथ ही इनसे सम्बन्धित अन्य महत्त्वपूर्ण एवं विशिष्ट पुरुषों के उपाख्यान भी पुराणों में निबद्ध हैं। पुराणों के सृजन का मुख्य प्रयोजन है कि उन महापुरुषों के चरित को जानकर हम भी उन जैसे धर्मपषिक, न्यायशील, अन्याय और पाप से दूर रहनेवाले परोपकारी, जनसेवी एवं प्रास्मबली बनें । अपने अधिकार की रक्षा और दूसरे पर अाक्रमण न करने की दृत्ति अहिंसा है । ये सब प्रवृत्तियां लोकप्तान के लिए प्रत्यन्त प्रायगयक हैं। पुराण में इन्हीं प्रवृत्तियों की पोर प्रेरित करते हैं। इस दण्टि से पुराण-साहित्य महत्त्वपूर्ण है। पुरासा ज्ञान के सागर हैं । उनका मध्ययन मंथन करते समय अनेक तथ्य उद्घाटित होते हैं, जीवन की कई दिशाएँ पालोकित होती हैं । अनुभव की अनेक शुक्तियां सीषिया सुलती हैं पोर सूक्तीरूपी मुक्ता प्राप्त होते हैं। संस्थान के विद्वानों ने पुराणों का परिशीलन करते समय इन्हें खोजा और संजोया है । ये सरस, सरन एवं भावप्रवरण सूक्तियां वार्तालाप प्रवचन, भाषण ...22.mammawratiisaniamrakiindiaDainbowinnicaciesankin

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