Book Title: Puran Sukti kosha Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan View full book textPage 5
________________ .. adde Ww. दो शब्द रुपने मन के धामों को करने के लिए 'मानव' को प्रकृति से जो भाषागत विशेषता प्राप्त है वह प्राणिजगत् में अन्य किसी को भी प्राप्त नहीं है । भाषा के माध्यम से मानव अपने विवारों का आदान-प्रदान करता है। अपने विचारों को सर्वजनहिताय अभिव्यक्त करने एवं स्थायीरूप प्रदान करने का प्रवास ही साहित्य-सृजन का प्राधार है । साहित्य जाति, धर्म, समाज, देश-विदेश की सांस्कृतिक स्थिति का परि नायक तो होता ही है साथ ही प्रतीत में घटित घटनाओं एवं तथ्यों का ज्ञान भी करता है और भावी संभावनाओं के सम्बन्ध में सतर्क- सावधान भी करता है। साहित्य सर्जक प्रपने मत या विचार के पोषण के लिए अथवा अपनी अभिव्यक्ति को सरस, सटीक एवं मर्मस्पर्शी बनाने के लिए सूक्तियों का प्रयोग करते हैं । सूक्ति, साहित्य-उपवन में से चुने हुए कुछ शब्द - पुष्पों का सुनियोजित, सुन्दर संयोजन है। सूक्ति का शाब्दिक अर्थ है सु-सुन्दर सुष्ठु उक्ति वचन, वाक्य अर्थात् वह वाक्य जो सुन्दर मनोहारी एवं कर्णप्रिय हो और साथ में हितकारी हो । ग्रहितकारी वाक्य 'सूक्ति' नहीं होता। ग्रनुभवों का प्रावार, कुछ fafree aa का कलात्मक संयोजन, मर्मस्पर्शी शैली और संक्षिप्तता सूक्ति की विशेषताएं हैं। सूक्ति में सापवत सत्य की भरा पर जीवन के गहन चिन्तन व प्रभुभवों का निचोड़ होता है । सूक्ति का प्रासा है संप्रेषणीयता । सूक्ति बहुत कम शब्दों में अपने कथ्य को अभिव्यक्ति करती है जो गंभीर एवं सटीक होती है इसीलिए कथन की पुष्टि में सूफियां बहुत सहायक होती हैं और श्रोता के मन पर सीधा प्रभाव डालती है । (i)Page Navigation
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