Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
View full book text
________________
अञ्जन प्र. कल्प
॥२४॥
मंत्रोमां पण शुद्धपाठनी साथोसाथ आगळ-पाछळनो संबंध, विभक्ति, लिंग, वचन, क्रियापद के काळनी दृष्टिए समुचित पाठ राखेल छे. जेम-पाना नं. ६ मा वस्त्र मंत्र ॐ ही आं क्रौ नमः' पाठ मुद्रितमा छे पण हस्तलिखितमा 'ॐ आँ हो को नमः' मळे छे तेथी ते राखेल छे.
(२) आगळ-पाछळ संबंधः-पाना नं. २०मां-नंद्यावर्तपूजनना त्रीजा वलयमा सोळ विद्यादेवीना स्थापनमंत्रो मुद्रितमा 'ॐ नमो रोहिण्यै सां मां स्वाहा' एम संस्कृतमा छे परंतु पूजनमंत्रो प्राकृतमा छे तेमज हस्तलिखितमां ते प्राकृतमा ज छे तेथी 'ॐ नमो रोहिण ए सां मां स्वाहा' ए रीते प्राकृतमा राखेल छे.
(३) विभक्ति-पाना नं. ११मा 'ॐ ही नमो ज्ञान-दर्शन चारित्रान् हः सर्वाङ्गं रक्ष रक्ष स्वाहा' पाठ आवे छे परंतु नमः-ना योगमा चतुर्थी आवे ते दृष्टिए ' . चारित्रेभ्यः' पाठ गखेल छे.
(४) लिंगः-पाना नं. १२मां ॐ हाँ ही हूँ है है। हः अ-सि-आ-उ सा-सम्यग्ज्ञानदर्शनचारित्रान् धर्म करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः 'पाठ आवे छे परंतु लिंगनी दृष्टिए ' . चारित्राणि धर्मः' आ पाठ राखेल छे. | (५) वचन-पाना नं. १४मां ॐ ही दिक्पालाय नमः' पाठ आवे छे परंतु वचननी दृष्टिए 'दिक्पालेभ्यः ' पाठ राखेल छे.
(६) काळा-पाना नं. ८२ छ पनदिक्कुमारिका महोत्सवमां-'ॐ ही अष्टावधोलोकवासिन्यो देव्यो योजनमण्डलं सूतिकागृह शोधयन्ति -अशोधयन् स्वाहा' पाठ मळे छे परंतु ' शोधयन्तु ' बाबर लागे छे तेथी ते ज राखेल छे.
आ रीते विशिष्ट स्थानोमां सूचवेल सामान्य फेरफार के पाठान्तर स्वीकार, मात्र अर्थसंगतिनी दृष्टिए ज करेल छे. ते माटे है
ESTRAIGHASHISH MASSASSIG
॥२४॥
Jain Education
a
l
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org