Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
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अञ्जन प्र.कल्प
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सत्तरमा सेकाना मध्यमां थया होय तेम संभव छे. अवर पादशाह प्रतिबोध क नगद्गुरु पू. आ. श्री हीरसूरिजी महाराजना शिष्य हता. ते पोश्रीनी (१) मृगावती आख्यान, (२) वासुपूज्य जिन-पुण्यप्रकाश रास; (३) सत्तरभेदी पूजा, सत्तरभेद जिनपूजा प्रबंध (४) बारभावना; (५) साधुकल्पलता-स धुवंदना (६) ही विजयसूरिंदेशना-सूरवेली; (७) मुनिशिक्षा स्वाध्याय; (८) सकलचंद्रकृत स्तबनो; (९) वीरजिन हम चडी-वर्धपान जिनवेली, (१०) वीर हुंडी स्तवन (११) गणधर स्तवन आदि कृतिओ मळे छे.
प्रस्तुत ग्रंथ पण अनुपम भावथी प्रथित छे तेथी अनेक विधिज्ञ अनुभवी साथे विचार-विनिमय करी ग्रंथकारना विशुद्ध आशयने नजरमा लइ मूळग्रंथ यथावत् राखी ज्या ज्या जे कंह पण लेबा जेवू ल.ग्युं ते सर्व एकत्रित करी ते ते स्थाने टिप्पण के परिशिष्टमां ते वातनी नोंध लोधी छे.
उर्मिप्रधान आ ग्रंथ होवाने कारणे संस्कृत भाषानो नियम कचारेक चूकातो हशे छतां य भाषानी दृष्टिए फेरफार के शुद्धि करवा जता ग्रंथकारनी मूळभावना ज विकृत बनी जवा संभव जणाता अर्थसंगत पाठान्तरना आश्रय सिवाय श्लोको पण यथावत् राखेल छे. जेम पाना नं. ३० मा क्षेत्रपालपूजननां श्लोकमां-त्रोj चरण-तैलाहिजन्मगुडचन्दनपुष्पधूपैः तेमज गुरुचन्दन० बन्ने पाठ मळे छे. परंतु 'गुरुचन्दन' पाठ योग्य लागता तेज राखे छे.
विवि समये द्विधा-मूंशवण ऊभी न थाय ते दृष्टिए शिष्टविधिज्ञोनी सलाह अनुसार अनेक पाठ-पाठान्तर जोया बाद जे पाठ समुचित जणायो ते ज राखेल छे. पाठान्तर मूकवामां आव्यो रथी. जेम पाना नं. १०मा 'करोति शान्ति जलदेवताऽसौ' अने 'करोतु' एम बन्ने पाठ मळे छे परंतु अर्थसंगत ' करोतु' पाठ राखेल छे.
॥२३॥
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