Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
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अञ्जन प्र. कल्प
॥२५२॥
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मंत्राक्षर लिखि आठ दिसाये, पुष्करणी चउ बार रे, पूर्णकलस थापी चिहुं विदिसि, वायु भुवन तिम च्यार रे १० थापी नंदावर्त लिख्या जे मल तास सविधांने रे, पूजो वासक्षेपादिक द्रव्ये गुरुसन्निधि बहुमाने रे ११ दीप अखंडस्युं नैवेद्य ढोइ बलि देइ देव वांदिजे रे, नंदावर्त-लेखकने पेहेलां शुभवस्त्रादिक दीजे रे १२ बीजे दिन ए किरिया निरखी रंगे रली सह थाये रे, खसालसाने मनोरथमाला दिन दिन वधती जाये रे १३
(ढाल ५॥ (तुमे पीतांबर पेहरौ जि-ए देशी ।।) करो किरिया त्रीजे दिवसे जी, विधिकारक स्वामी,
तुम समकितगुण जिम फरस्ये जी, पुन्य दिशा पामी करो एकभुगत समताये जी वि., ब्रह्मचारी दस दिन ताये जी पू. अडजातिना भैरव कहीई जी वि., तेहमां क्षेत्रपालने लहीई जी पु. तपगच्छतणो रखवालो जी वि., दुख-संततिहरण दुकालो जी पु. २ आह्वान करो तस मंत्र जी वि., जे भाख्या छे पट यंत्रे जी पु. ते प्रसन्न करी क्षेत्रपालो जी वि., करीये तस भक्ति विशालो जी पु.
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