Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra  Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat

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Page 320
________________ अञ्जन प्र. कल्प ॥२७०॥ Jain Education जीरे हय गय आगल मालता, बहु वाजे वाजीत्र संगीत सुं०, जीरे सुरनरना साजन मल्या, जांनरणी गाये गीत सुं० ५ जीरे पुरजन थाट मली जुये, दोडीने चोक बाजार मुं०, जीरे प्रभु आवी ऊभा रह्या, इम मंडप तोरण- बार सुं० ६ जीरे पोहकण विधि पोहकीने, पछे आण्या चोरी मझार सुं०, जीरे पधरावी कन्या तिहां, करे नाद वेद उच्चार सुं० ७ जीरे सकल सुरासुर साखसुं, करे करमेलापक त्यांहि मुं०, जीरे बेहु पखे सुर सुंदरी मली, गाये गीत उच्छाहि मुं० जीरे पेहेलं मंगल वरतीने दिये लक्षप्रमित हयदान सुं०, जीरे बीजुं मंगल वरतीने, दीये हाथी हजारने मान सुं० ९ जीरे त्रीजुं मंगल वरतीने, कोड मूलना द्ये अलंकार सुं०, जीरे चोयुं मंगल वरतीने, पुत्रा पर तणी होये निरधार (2) मुं० ९ वाणानी विधि ८ १० For Private & Personal Use Only ॥२७०॥ ainelibrary.org

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