Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
View full book text ________________
R
अञ्जन प्र. कल्प
अञ्जन प्र.कल्प
-
॥२८१॥
| ॥२८१॥
CAREGARCAMPARAN
है| इम धारीने बिंब प्रतिष्ठा करवाने सुविशालो जी, खुशालचंद सवाईचंद बहु (बिह) पितापुत्र उजमालोजी,
खुशाल सवाइ पालिताणे श्री विमलाचल भेटी जी, गणधर विजय जिनेंद्र सरिने बंदी आपद मेटी जी ३ अति आग्रहथी विनति करीने भरुअच तेडी लाव्या जी, महोत्सवथी वांदीए श्री गुरु संघतणे मन भाव्या जी, जल जात्रा करी साडंबरथी थापी पूर्ण कुंभ जी, आगल किरिया श्रीगुरु श्रावक साथे थई थिर थंभ जी ४ श्रीशंखेश्वर पास प्रभुनी पडिमा आदें बहुली जी, आचारज अधिवास क्रियाये अवतारित करे सघली जी, फागुण शुदि पंचमी कविवारे लगन समय जब आवे जी, इंद्र थई गुरु कुंभ करीने, अंजनशिलाका फिरावे जी ५ पांच शब्द वाजिंत्र तिहां बाजे, गाजें, दुंदुभीनाद जी, केवलज्ञान तणो कल्याणक, गावे गोरी मधुरे सादें जी, श्रीसंघे प्रासाद निपायो, मानु अपर कैलास जी, पीठ मंडपने अदभुत देखि, उपजे मोद विलास जी ६ वृषभ लगनमा तेहिज दिवसे, पीठ उपर उल्लास जी, शुद्धि विधान करीने थाप्या श्रीशंखेश्वर पास जी, आचारज वाचक मुनिवरना उचित सह साचविया जी, सूत्रधार शिल्पी ने याचक दान थकी उल्लसीया जी ७ नव नव भक्ति करी साहमीनी, विविध थकी पकवाने जी, शालदाल शुरहां घृतसाकें भक्ति करी बहुमाने जी, | देई तंबोल तिलक करी छांटयां केशर राते वरणे जी, यथा जोग्य पेहेरामणी कीधी श्रीफल वस्त्राभरणे जी ८ द जिन शासन उन्नत-परशंसा, खट दर्शन में वाधी जी, इम सदव (व्य)य करी लषमी जेणे, सुर-शिव पदवी साधी जी,
तपगच्छ ठाकुर गुण मणी आगर श्री विजयदेव सुरेंदाजी, प्रतपो तब लगे नाम ए गुरुनु जब लगे मेरु गिरिंदा जी ९
CREA
Jain Education International
For Privale & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340