Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
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अञ्जन प्र. कल्प
॥२८८॥
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६९ शालिना ६९ हेरवी
७२ हंस
७७ ह्रा
८४ देष्यो
८४ वाल०
८६ मंत्रित
९१ स्त्रगधरा
९४ अभिषेकमां
९८ पाणना
९८ श्लाक
१०८ पुष्पं ध
१०८ परि. नं. १ ए | ११३ स्निग्धोभि० ११८ त्रैलोक्य०
शालिनी | १२५ बुद्धि पहेवी १२८ ०दायिनि
| १२९० देवया
१२९ सुहयाइ
हंसः
ह्रीँ
देव्यो
बाल०
मंत्रित
खग्धरा
अभिषेक
पाणीना
श्लोक
पुष्पौध
| १३४ है
१३५ हो १४८ प्रतिष्ठा
१५३ विम्बे० १५७ प्रोक्षणक
१५८ धारणापविश्य
१५८ जिना
१७० सौभाग्य वी०
०१ औ १७२ ०झञ् स्निग्धैरेभि० १७५ निर्वाणेभ्य त्रैलोक्य १८४ बसन्त
बुद्धि दायिनी • देवया
सुहयाए १९१ ॥१॥
प्रतिष्ठा
बिम्बे
प्रोक्षणकं धारणोप०
जिना:
०धी०
० झञ
निर्वाणेभ्यः
वसन्त
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| १८५ १८८ वोहिया १८९ थिविग
२०१ वभूव
| २१० वृन्द्रैः
२१० १ ऌ
२११ १ अ
२१२ अवतरण
२१६ पात
२२२ उत्तानो
२४५ प्रतिष्टा २५६ आणंदनो
| २६३ जननीन
हयाणं
थिविर०
।।१५।।
बभूव
वृन्दैः
१ औ
१ अ
अवतारण०
पान
उत्तानो
प्रतिष्ठा
जिणंदनो
जननीने
॥२८८॥
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