Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra  Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat

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Page 330
________________ भञ्जन प्र. कल्प ॥२८० ॥ Jain Education चैत्यवंदन - स्तवने करी जी, स्तवीये जिन अभिधान, थाल भरीने ढोइये जी, नैवेद्य फल पकवान जि० १० थापन अंतरे जी, पवित्रपणे विधिकार, दस साते समरण शुद्धिथी जी, गणिई तिहां वर्णउच्चार जि० ११ अाइ महोत्सव पछे जी, करीये अतिहर खेण, स्नात्र अट्ठोत्तरी करी जी, विधियुत रंग भणंत जि ( ढाल १९ ।। ) ( वीर जिनेशर भुवन दिनेसर गौतम गुणना दरिया जी - ए देशी ॥ ) इणि परे जैन प्रतिष्ठा कीजे, लीजे नरभव लाहो जी न्यायउपार्जित वित्त धर्ममां, खरचो घरी उछाहो जी संघ सयण ने कुटुंब संगाथे, वैर-विरोध नीवारी जी, समकित दायक निर्मल करणी करीये भवी-हित कारी जी १ जैन प्रतिष्ठामां जिनवरनां पंच कल्याणक करवा जी श्रीगुरु श्रावक बेहुं मलीने विधिजोगे अनुसवाजी, भूमिशयन ब्रह्म चरज एकासण दस दिन पेहला धारो जी sarat विधिकारक इणि परे इहपरलोक सुधारो जी २ दिन For Private & Personal Use Only १२ ॥२८० ॥ jainelibrary.org

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