Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra  Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat

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Page 329
________________ भञ्जन प्र.कल्प ॥२७९॥ RSSAGAR चोखंडो रूपक वली जी, जव ने दर्भ समूल, थापी ते ऊपर ठवो जी, सेवन पट्ट अनुकूल जि. ४ यक्षकर्दमे स्वस्तिक रचोजी, दक्षिणावर्त आकार, कूर्म मंत्र कुंभक करी जी, लिखीये वर्ण सुधार जि० ५ बलि बाकुल उच्छालिने जी, देव वंदी क्षेत्र देव, सेवन पट्टे थापीये जी, मूल नायक जिन देव जि० ६ जिन गर्भ शाखा द्वारनी जी, कीजे तस अड भाग, तिहां उपरे (रि) तन आठमा जी, अंसनो कीजे त्याग जि. ७ तदनंतर सप्तांसनो जी, लीजे सातमो भाग, तेहमां जिन प्रतिमातणो जी, आणीई दृष्टिनो भाग जि. ८ पूजा अष्ट प्रकारनी जी, करीये धूप अट्टोपे, आरात्रिक मंगल करी जी, कीजे वज-आरोप जि० ९ RRRRRRRRRRRछन १ आटोप ॥२७९॥ Jain Education intonal For Private & Personal use only Contr.jainelibrary.org

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