Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
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अञ्जन
प्र. कल्प
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आरती मंगलदीप करीने, शिवकल्याणक धार रे केयुं तेह कल्याणक केरो, (ढाल
( कोने ब्राह्मण किहां थकी आव्या, श्रीपास प्रभु उपगारी, बहु तार्या नर ने नारी, प्रभु समतसिखरने पामी, मन-वयणना योग विरामी, सत्तागत पेहेले भागे, बहोत्तर प्रकृतिने त्यागे, अवगाहन लही पूर्वराते, मुनिराज तेत्रीस संघाते, प्रभु अजर अमर अविनाशी, थया पूर्णानंद विलासी, पछे श्रीगुरु संघनी साथे, देव वंदावि होय सनाथे, अक्षय - तंदूलन विसाल, गुरु आगल था से थाल, गुरु अक्षत अंजली लेइ, गाथानेा पाठ करेs, गुरु प्रवचनमुद्रा करीने, धर्मदेशना द्ये हित धरीने, पछे पडदो उघाडवा सारु, संघ थापे फलादिक चारु,
रगे करी अधिकार
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१७ ॥ )
arrator fariat रे लाव्या-ए देशी ||) देसे उणोसीत्तर वरस याय, भोगवी केवलपर्याय १ गुणठां अयोगी सोही, शैलेसीकरणने आरोही २ भागे बीजे प्रकृति तेर, तेहनो करो तुरत निवेर ३ श्रावण शुद्धि आठिम दिवसे, प्रभु शिवमंदिरमां निवसे ४ इम मोक्ष कल्याण भावी, करो किरिया आगल ठावी ५ स्तव धानके अजित शांति, भणीये अथवा वृद्ध शांति ६ श्रावक कुसुमांजली भरीने, ऊभो रहे विनय वरीने ७ अक्षत सवि विवने खेपे, श्रावक कुसुमांजली खेपे ८ करी अंतरपट for आगे, द्ये तंबोल संघने रागे चैत्यवंदन आदे कर, गृहपतिये नैवेद्य घरं १०
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