Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥ २८२ ॥
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तास सीस श्री लब्धि विजय वर पंडित मांहे लोहो जी, रत्नविजय बुध विनयी तेहना वादी मतंगज सीहो जी, तास सीस श्रीमान विजयना विवेक विजय वड भागी जी तेहना बुध गीतारथ सारथ अमृत विजय सोभागी जी १० तस चरणांबुज मधुकर - सेवी रंगविजय कहे हेते जी, कयुं प्रतिष्ठा कल्प-तवन में लहि कारण संकेते जी, बीजं मंदमति तेहनें दश दिननुं विधान जी कीधूं तोहे सदगुरु संगे करज्यो थई सावधान जी विधिकारक विधि एह सुणीने मत कोई दूषण देज्यो जी, नाम मात्र ए रचना कीधी, सुकवि सुधारी लेज्यो जी, नर नारी उपयोगपणाथी, भणसे जे हिये हित आणी जी, मंगलमाला लच्छी विशाला लहेस्यें शिवसुख प्राणी जी १२
( कलश :- )
इम सयल सुखकर दुरित भय हर पास श्रीशंखेश्वरी, निधि अब्धिर्वसुसंसिमान वर्षे गाईयो अलवेश्रो । इह प्रतिष्ठाकल्पतवन सांभली जे सदहे, ते ऋद्धि वृद्धि सुख सिद्धि सघले सदा रंग विजय लहे ॥ इति श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ पंचकल्याणकगभित-प्रतिष्ठा कल्पस्तवनं संपूर्णम् ॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
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