Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
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अञ्जन प्र.कल्प
॥२७५॥
(ढाल १६ ।।)
(ए तो गेहेलो छे गिरधारी-ए देशी ॥) चोरासीमे दिवस प्रभुजी, जन्म-पुरी छ ज्यांहि रे चोवी हारथी छट्टतप साथे, आवे व्रतवन मांहि
ए जिन सेबो ने, जे दोष भर्या जग मांहि ते त्यज देवो ने (आं०) १ धातकी वृक्षनी हेठळ स्वामी, क्षपकश्रेणि आरोहे रे,
___ करण अपूरय-अनिवृत्ति करीने, जीत्यो संजल लोह ए जिन० २ खीणमोह सयोगी फरसी, ध्यानबले अप्पाण रे,
चइतर वदीनी चौथे प्रभुजी, पाम्या केवलनाण अवधि जांणी चोसठ सुरपति, आइ सीस नमाइ रे,
करी त्रीगडानी अभिनव रचना, निज निज कृत्य बनाइ ते त्रीगडामां आप बिराजे, जगतारक जगदीश रे,
चोत्रीस अतिशय-संयुत दाखे, वाणी-गुण पांत्रीश
BiHICH CIRICARICHIRGHIGHEST
|॥२७५॥
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