Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
View full book text ________________
अञ्जन
प्र. कल्प
॥२७८॥
Jain Education Int
अंजलीमुद्रा अनुसरोये, सवि देव विसर्जन करीये ११ तदनंतर कंकण छोडे, निज कर्मबंधनने विछोडे १२. नेत्रांजन देशना सार, गुरुना ए पट् अधिकार १३ गुरु अमृतविजय प्रसंगे, तिम भाखी सघली रंगे १४ ( ढाल १८ ॥ )
नंदावर्त्त विसर्जन कीजे, कल्प भाषित मंत्र भणजे, वृद्ध शांति धारा देवी, फूल चंदन धूप उखेवी, स्तुती - दानवली- मंत्रन्यास, आह्नान दिसाबंध भास, दसमा दिननी ए करणी, जिम कल्पमाहे विधि वरणी,
( झाझरी मुनिवर धन धन तुम अवतार - ए देशी ।। ) अथ चैत्यमां थापना विधिः -
बिंव प्रवेस जिम कीजीये जी, कहिये तेह विधान, शुभ दिवसे थिरलगन नवासें जी, जोइ शुभ ग्रह बलवान १ घरमा थापो जिन पडिमा सुविचार,
जिन
जे पीठे प्रभु थापियेजी, तिहां विधि करीये प्रसस्त जि०
व्रीहि सरसब दूर्वा ठवो जी, ते ऊपर घरी प्रेम,
२
वृषभ श्रृंगनी मृत्तिकाजी, गजदंत चक्रनी तेम जि० ३
For Private & Personal Use Only
॥२७८॥
Minelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340