Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
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अन्जन प्र.कल्प
॥२६९॥
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श्रावक चंदनफूले पूजी आहादे रे, सवि बिंबने वस्त्र अमूले करी आछादे रे, ते उपर नव रंगें श्रीफल ठावो रे, नैवेद्य धरीने खास फुलेके चढायो रे ११ ।
( ढाल १३ ॥) (जोरे घोडी तेती हाथी डग भरे, जोडी पाछल चमर विजाय । जादवरायनी घोडली-ए देशी ॥)
जीरे योवनवय जिन निरखीने, धणुं मावित्र हरखी ताम, सुंदरवर पासने जीरे जोग्य प्रसेनजित रायने, परपुत्री प्रभावती नाम मुं० १ जीरे जोडी सगाइ तेहस्युं, निज-अंगजनी लेइ आण मुं०, जीरे सोभाग्य थिति जाणी करी, कीधुं ते वचन प्रमाण मुं० २ जीरे प्रोदित शुद्धलगन दिये, परजीने दोस अढार मुं०, जीरे इंद्र इंद्राणी मी करी, करे विवाहनो व्यवहार मुं० ३ जीरे पीठी करी मजन करी, धरी अंगे श्रृंगार अमान मुं०,,
जीरे पासजी घोडे चडथा, करे धरी श्रीफल-पान सुं० ४ १ पुरोहित
ARRRRRRRA
॥२६९॥
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