Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
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अञ्जन प्र.कल्प
॥२६७॥
ACCHAPA
तिम नाम थापन इहां जाण', विधि विवि मन आणो,
आभरणे देह सोहावो, प्रभु नीरखी भावना भावो १७ पछे अन्नबोटण-विधि करीये, जिन आगे नैवेद्य धरीये,
बलि दीजे हरख अमोले, गुरु सकल चंद इम बोले इम अडदस स्नात्र करीजे, जिम अब्रह्म दोष हरीजे, आठमे दिन खुसालसाहे, कीधो उछरंग उच्छाहे
(ढाल १२ ॥) (कार्तिकमासे कंत मेहली चाल्या रे -ए देशी ॥) नवमे दिन गुरुराज, करीने साखी रे, करो विधिकारक हवे काज, मन थिर राखी रे, सहेजातिसय च्यार प्रभुने जनमथी रे, अति अदभुत रूप अपार लवसत्तमथी रे १ भवभासन ऋण ज्ञान धारक स्वामी रे, अंगूठे अमृतपान करे शिवगामी रे, कल्पतरु परे पास-प्रभुजी वाधे रे, लक्षण गुण महिमा जास पार न लाधे रे २ बालक थइने देव आवी रमाडे रे, थइ हंस मोर ततखेव प्रभुने हसाडे रे, इम करतां भणवा योग थइ ते जाणी रे, करे मावित्र शुभसंयोग लगन प्रमाणी रे ३
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F॥२६७॥
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