Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra  Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat

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Page 316
________________ अञ्जन प्र.कल्प ॥२६६॥ PARAN ११ परमेष्टी गुरुड मुत्तामुत्ती, मुद्रा करी मंत्र पवीत्ती, जिन आह्वान करे गुरु रागे. बली स्नात्र भणावो आगे पंचगव्यनुं नवमुं गणीये, सौगंधिक दसमु भणीये, शुभ फूलनु एकादम, गंधस्नात्र करो द्वादसमें स्नात्र तेरमुं वासर्नु मुणीये, दूध चंदन चौदमे थुणीये, पन्नरमुं स्नात्र ते होय, केसर साकरतुं सोय दिन त्रीजे अरीसो देखावो, रवि ससिनुं दरसन करावो, छद्रे दिन धर्मजागरणं, दिन दसमे दमुठणकरणं तीर्थोदक सोलमे विरचो, सतर# बरासे चरचो, केसर चंदन लेइ फूल, तस स्नात्र भणाबो अमृल ए विधिये स्नात्र अढार, करे मोहोछव सु विधिकार, बिंबे वास तिलक धूप कीजे, विधिये बली देव बांदीजे दिन बारमे नृप परिवार, भोजन मुंजावि उदार, संतोपि करे सतकार, ठवे नाम श्रीपासकुमार THEHORESORRRRROR १२ १४ V२६६॥ Jain Education DIL For Private & Personal Use Only W lainelibrary.org

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