Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra  Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat

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Page 315
________________ अञ्जन प्र.कल्प ३ ॥२६५॥ ४ घर घर तोरण बंधावे, कुंकुम-हाथा देवरावे, पुरजनने हरप न मावे, नारी धवल मंगल ने गावे तालाचर भांड नाटकिया, अतिखेल करे तिहां मलिया, नृप निरखी हरष अमांने, बहु दान दिये सनमाने घण छंदे वाजिंत्र वाजे, तिणे नादे अंबर गाजे, इम मोहोछबनुं मंडाण, दिन बार करे महिराण कुलस्थिति करे पेहेले दिवसे, अढार स्नात्र करी हरसे, जलपात्रमा ठविये उल्लास, चंदन पुष्पादिक बास स्नात्र सु (च) रण खेपीये सार, पछे कलस करीने च्यार, जिनमुद्राये काव्य उच्चारा, अभिषेक करे मुविचार हेमचुरणे पेहेलु सनात, बीजुं पंचरत्ननुं विख्यात, ___ तरुछालनु त्रीजु कहीये, चोथु मंगलमाटीनुं लहीये पांचमु सद औषधी केलं, अष्टवगर्नु छटुं भलेरु, सातमु बली तेही ज नामे, आठमुं सर्व औषधी कामे ७ ८ ९ ॥२६५॥ Jain Education ainelibrary.org For Private & Personal Use Only Sonal

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