Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra  Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat

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Page 306
________________ भञ्जन प्र. कल्प ॥२५६॥ Jain Education ational सेवनपट्टे कुंकुमचंद जी, सोनानी लेखणथी श्रीकार रे, areeranat रचना कीजीये जी, स्वर पद वर्ण उच्चार रे प्रथम दले अरिहंतने थापीये जी, बीजे सिद्ध नमो सुविहाण रे, पवयण चीजे चोथे वखाणिये जी, आचारज गुणखाण रे पांच थी (वि) र नमो भावे करीजी, छट्टो प्रणमीजे उपझाय रे, सातमे मुनिपद ज्ञान ने आठमे जी, नवमे दर्शनपद सुखदाय रे विनय नमो दसमे पदेजी, एकादसमे चरण पवित्त रे, वारमे ब्रह्मचरज प्रणमो सदाजी, जेहथी लहिये सित्रपद नित्त रे तेरमे किरिया चौदमे वंदिये जी, तपपद विविध प्रकार रे, गौतम गणधर पन्नरमें नमो जी सोलमे श्रीजिनपद सुखकार रे चारित्रधर सत्तरमे पूजिये जी, नाणधारक अदसमे बंद रे, श्रुतर पद नमिये ओगणीसमे जी, बीसमे तीरथपद सुखकंद रे इणीपरे वीसथानिक रचना रवीजी, अरचीजे आठे द्रव्य उदार रे, स्नात्र भणावी आदि आणंदनो जी, कलस भणावो भवि-हितकार रे For Private & Personal Use Only सम० सम० सम० सम० सम० सम० सम० ३ ४ ७ ॥ २५६॥ ww.jainelibrary.org

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