Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥२५४॥
Jain Educationtional
( ढाल ६ || )
१
( बात करो वेगला रही मारा वाल्हा रे, पेहला देखे दुरिजन लोक ए स्यां चाला रे - ए देशी ॥) चोथे दिन सासनसुरी, हुं वारी रे, चकेसरी प्रमुख चोविस, हुं बलिहारी रे अभिधाने शुभ द्रव्यथी हुं०, पूजीने पूरी जगीस हुं० वली चोसह सुरराजने हुं०, तस मंत्रे करी आहान हुं० जल चंदन आदे देई हु०, तिहां अरचे थइ सावधान हुं० भूतबलि अभिमंत्री ने हुं०, लेइ निज घर बाहिर तेह दस दिसिये उछालिये हुं०, उपजोग थकी घरी नेह हुँ० उत्तमांगथी थापीये हुं०, सिद्धादिक मंत्र विचार हुं० इम न्यास करी कर्ता हवे हुं०, सिद्धचक्र मनेोहार हुँ० अष्ट-कमल-दल थापीने हुं०, मध्ये श्री अरिहंत हुं० पूरवदलमां सिद्धजी हु०, दक्षिण-दले सूरि पाठीक द्वादस अंगना हुं०, पाठकजी उत्तर दलमां जाणीये हुं०, मुनिराजतं
करे
तस
महंत हुं०
पश्चिम
जाण हुं० अहिठाण हुँ०
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