Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra  Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat

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Page 301
________________ अञ्जन प्र.कल्प PEGENERGRE5%2ॐॐॐ नरनारीने उलसत भावे तंबोलादिक दीजे, ते दिनथी मांडीने निस दिन, लघुसनात नित कीजे इण १२ खसालचंदे हरखे कीधी, पेहेले दिन ए करणी करीये, विधियोगे जिम वरीये, रंगे जिम सिवघरणी इण० १३ (ढाल ४॥) (आदि जिनेसर विनति हमारी-ए देशी ॥) नंदावर्तनी बीजे दिवसे किरिया कीजे उदार रे, सोवनपट्टे याकर्दमना सात लेप करी सार रे नंदावर्त नमो नित भावे १ मध्यभाग समसूत्रे करीने आठ वलय तस कीजे रे, कपरादिक अष्टगंधस्यं हेमसिलाके लिखीजे रे २ धुर वृत्ते नंदावर्त लिखिये मध्ये बिंब ठवीजे रे, दक्षिण सोहम, उत्तर भागे इशान इंद्र ठवीजे रे ३ बीजे वलये आठ दिशाये अरिहंत सिद्ध सूरीश रे, पाठक मुनिवर ज्ञान ने दर्शन चरण ए आठ नमीश रे ४ त्रीजे वलये चोवीस कोठे जिनमाताने धारी रे, पणवाक्षरयुत नामने लिखिये हवे चोथे संभारो रे ५ कोठा सोल करीने तेहमां माहाविद्याने राखो रे, पांचमे चोवीस घर आलेखी लोकांतिकने भाखो रे ६ छट्टे वलये आठ दिशाये च्यार निकायना इंद रे, तस देवी हवे सातमे वलये लिखिये आठ दिगेंद रे ७ आठ दिसाये आठमे वलये लिखिये ग्रह-अभिधान रे, आठ वलय पाछल त्रिगडानी रचना करीये समान रे ८ बारे पर्पदा पेहेला गढमां तीर्यच बीजे वखाणो रे, त्रीजा गढमां सुर-नर-चाहन, लिखिये तास प्रमाणो रे ९ १ सेवनपट्टे 45454595%25A RSA ॥२५॥ ॥२५॥ Jain Education anal For Private & Personal use only www.ainelibrary.org

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