Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
View full book text
________________
अञ्जन प्र. कल्प
॥२५॥
(ढाल ३॥)
(वीण म चासो रे-ए देशी॥) इणविध कीजे रे ठवणा पूर्ण कलसनी, जिम क्रिया सीझे रे निरविधने दिन दसनी.... नि छन घट राते वणे पृथु सुघाटे लीजे, तेहनी उपर आठे मंगल फरतां चित्र लिखीजें इण. १ तेहनी कंठे डाभ समूलो ऋद्धि वृद्धि संघाथें, गेवासूत्रे बांधे ( हेते ) विधिकार विधि साथें इण० २ मंत्र सहित स्वस्तिक कुंकुमनो तेहनी मध्ये कीजे, पंचरतन पुंगी वली रूपक समचतुरंस ठवीजे इण० ३ अट्ठोत्तर शत-कूपक जलस्यु मोहोत्सवनुं जल भेलो, वर्द्धमान सूरीसर भाषे तीरथ जल बहु मेलों इण. ४ ते जल लेइ सोहव सुतवंती नवपद मंत्र संभारे, थिर-सासे कुंभक करी जलने पूरे अक्षयधारे इण. ५ पीतांशुक बहुमूलं ढांकी फुलमाल पेहेराई, तेहनी ऊपर श्रीफल थापो मंगलगीत गवाई इण० ६ मुंदर साल (लि)नो साथियो पुरी, थापो घट शुभ दिवसे, च्यार सराव जुवारा केरा, ठवो स्वस्तिक चिहुं विदिसे इण०७ जिनपडिमाने जमणे पासे दीपकयुत घट धरीये, कुंभचक्र नक्षत्र मले जो, तो सवि अशुभने वारे इण० ८ स्नात्र अट्ठोत्तरी, बिंव प्रवेशे, विवप्रतिष्ठा होवे. ए करणीमां मंगलरूपी, कुंभथापन धुरे जोवे इण. ९ दीप अखंड ने धूपत्रिकाले, साते समरण गणीये, हिंसक जीव ने खी ऋतुवंती, तस दृष्टी अवगुणीये इण० १० मल्लि-वीर-नेमीसर-राजुल, तास तवन नवि भणीये, उपसर्गादिक भावना टाली, मंगल गीतने थुणीय इण० ११
॥२५०॥
Jain Education Inter
For Private & Personal Use Only
K
nelibrary.org