Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
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अञ्जन प्र.कल्प
॥२४८॥
SABOROSSASSUOSTAS
ए दिनथी दस दिन लगे, अमारपडह वजडावो रे, हरखें सांझी प्रभातियां, आदर देइ गवरावो रे ९ मोटा मंडप मांडीने, चंद्रोदय बंधावो रे, पंचशब्द वाजींत्र स्युं, दुंदुभिनाद बजावो रे १० खुसालसाये निज पुत्रने, सवाइचंदने अनुमती दीधी रे, अतिहरषे तेणे रंग स्युं, करी करणी ए सुप्रसिधी रे ११
(ढाल २)
( भरतनृप भावसु ए-ए देशी ॥ ) हवे जलयात्रा कारणे ए मेली संघ समाज तो जलजात्रा भणी ए
हय गय रथ पालखी ए हेम रजत रचि साज तो, जल० १ सुरज पांन (?) वदें घणांए रवितेजे झलकत तो,
लघुपताकः-किंकणी-वें ए इंद्रध्वज लहकत तो भेरी भुंगल सरणाइयो ए बाजे विविध संगीत तो,
सोहर टोले मली भली ए गाये मंगल गीत तो इम मोटे आडंबरे ए घुरे धुहिर निसांन तो,
पवित्र जलाशय पुर बहि ए आवी करीये सनान तो ..
SARANASANCHAR
॥२४८॥
१ गंभीर
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