Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
View full book text
________________
परिशिष्ट नं. १ अञ्जन प्र.कल्प
इन्द्र-इन्द्राणीने यज्ञोपवीतादिक धारण करावता बोलवाना विशिष्ट मंत्रोः-(पाना नं. ६८नी टिप्पण)
च्यवनकल्याणकसमये इन्द्र-इन्द्राणीनी स्थापना करता पहेला यज्ञोपवीतादि आभूषणो ते ते श्लोकोथी मंत्रित करी ॥१९३॥
पहेरावाय छे. ते आभूषणो पहेरावता श्लोकोनी साथे नीचेना विशिष्ट मंत्रो बोली शकाय छे. १-'यज्ञोपवीत' (सोनानो सांकली) इन्द्रने धारण करावता-श्लोक बोल्या बाद बोलवानो मंत्र:__ ॐ ही इन्द्राय यज्ञोपवीतं परिधापयामीति स्वाहा ॥१॥ २-'मुकट' अने 'तिलक' इन्द्रने धारण करावता-श्लोक बोल्या बाद बोलवानो मंत्र:
ॐ ही इन्द्राय मुकुट परिधापयामीति स्वाहा ॐ ह्रीँ इन्द्राय तिलकं परिकल्पयामीति स्वाहा ।।२।। ३ 'कङ्कण' इन्द्रने धारण करावता-श्लोक बोल्या बाद बोलवानो मंत्र:
ॐ ह्रीँ इन्द्राय कङ्कणं परिधापयामीति स्वाहा ॥३॥ 18| ४ 'मुद्रिका' (वीटी) इन्द्रने धारण करावता-श्लोक बोल्या वाद बोलवानो मंत्र:
ॐ ह्रीँ इन्द्राय मुद्रिकां परिधापयामीति स्वाहा ॥४॥ | ५ 'षोडशाभूषण' इन्द्रने धारण करावना-लोक बोल्या बाद बोलवानो मंत्र:__ ॐ ह्रीँ इन्द्राय केयूरहारादिषोडशाभूषणानि परिधापयामीति स्वाहा ॥५॥
-ASHR%
| ॥१९३॥
Jain Education Inter
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org