Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥ २२० ॥
Jain Education I
परिशिष्ट नं. ४ - विविध २५ मुद्राओनुं स्वरूपः
अंजनशलाका-प्रतिष्ठा, अहार अभिषेक, ध्वजदंड प्रतिष्ठाः परिकरप्रतिष्ठा वासक्षेपमंत्रया वगेरे विधिओमां मुद्राओनो खास उपयोग थाय छे. ते गुरुगमथी योग्य अधिकारीओए जाणवी. तेनुं सामान्य सरूप आ परिशिष्ट नं. ४मां बतावेल छे ।
१ जिनमुद्रा
चत्तारि अंगुलाई पुरओ उणाई जत्थपच्छिमओ । पायाणं उस्सग्गो, एसा पुण होइ जिणमुद्दा ||
चार आंगल (जेटलं अंतर - वे पगना) आगलना भागमाः तेथी ओछा आंगल (जेटलं अंतर) पाछलना भागमां राखी वे पगथी काउसग्ग करो (बने पगे सीधा ऊभा रहें. ) ए रीते जिनमुद्रा थाय छे. ॥ १ ॥
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॥२२०॥
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