Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
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अञ्जन प्र. कल्प
॥२२२॥
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५ धेनुमुद्रा:
116
६ पद्ममुद्रा:
Jos
७ अंजलिमुद्रा:
५] अन्योन्यथिताङ्गुलीषु कनिष्ठानामिकयो: मध्यमातर्जन्यो व संयोजनेन गोस्तनाकारो धेनुमुद्रा (सुरभिमुद्रा) ।। परस्पर jeet aratमां कनिष्ठा अने अनामिकामां मध्यमा अने तर्जनीने जोडवाथी गायना स्तनना जेवा आकारवाली धेनुमुद्रा ||५||
६ का करी त्या मध्येऽङ्गुष्ठौ कर्णिकाकारौ विन्यसेदिति पद्ममुद्रा ॥
काथनी आंगलीओ राखी वचमां वे अंगुठा भेगा करी कर्णिकाकारे राख्या ते पद्ममुद्रा ||६|| ७ उत्तानी किञ्चिदञ्चितकरशाखी पाणी विधाय धारयेदिति अंजलिमुद्रा ||
लांबा करेला परंतु हानी आंगलीओने कंडक बांकी वालीने वे हाथ राखवा ते अंजलिमुद्रा ||७||
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॥२२२॥
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