Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
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१४ गणधरमुद्रा:
१५ अंकुशमुद्राः
१६ मीनमुद्राः
अञ्जन प्र. कल्प
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||२२५॥
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१४ यत्र दक्षिणहस्तो हृदयसन्निहितो मालान्वितः, वामभुजश्च तिरश्चीनः-सा गणधरमुद्रा॥ ____ मालाथी युक्त जमणो हाथ हृदय सन्मुख राखी डाबो हाथ तीछौँ (पलांठीमा) राखवो ते गणधरमुद्रा ॥१४॥ १५ दक्षिणहस्तस्य तर्जनी प्रसार्य मध्यमाया इपद्वक्रकरणे अङ्कुशमुद्रा॥
जमणा हाथनी तर्जनी आंगलीने लांबी करी मध्यमाने थोडी आंकडानी जेम वालवी ते अंकुशमुद्रा ॥१५॥ १६ वामहस्तपृष्ठोपरि दक्षिणहस्ततलं निवेश्याङ्गुष्टद्वयचालनेन मीनमुद्रा॥
डावा हाथनी पीठ पर जमणा हाथर्नु तलीयुं स्थापन करी बन्ने अंगुठा फरकाववा ते मीन (मत्स्य) मुद्रा ॥१६॥
॥२२५॥
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