Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
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अञ्जन
18 २० पर्वतमुद्रा:प्र.कल्प
बन्ने हाथनी अनामिका अने मध्यमा परस्पर विपरीतमुखी करी ऊंची करीने जोडवी अने बाकीनी आंगलीओने
नीचेनी बाजुए राखवी ते पर्वतमुद्रा ॥२०॥ PI २१ आह्वानमुद्रा:६ वे हाथ वडे अंजलि करीने अनामिकाना मूलना पर्व साथे अंगुठाने जोडयो ते आह्वानमुद्रा ॥२१॥ २२ स्थापनमुद्रा:
आह्वानमुद्राने नीचा मुखवाली करतां स्थापनमुद्रा बने छे ॥२२॥ का २३ सन्निधापनमुद्रा :
| वने हाधनी मूठी वाली भेगी करी अंगुठाने उंचा करवा ते सन्निधापनमुद्रा ॥२३॥ त २४ सन्निरोधनमुद्राः४. बने हाथनी मूठी वाली अंगुठाने अंदर राखयो ते सन्निरोधनमुद्रा ॥२४॥ २५ अवगुण्ठनमुद्रा:
वंने हाथनी मूठी वाली फेलावेली तर्जनी अने मध्यमाना उपर अंगुठा मूकवा ते अवगुण्ठनमुद्रा ॥२५॥ ॥२२७॥
॥ इति २५ मुद्राओनुं स्वरूप ॥ परिशिष्ट नं. ४ ॥
ARKARKARGAOGRABA
||२२७॥
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