Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
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न
प्र. कल्प
॥२१७॥
પ
नंबर ग्रहनाम
१ सूर्य
२ चंद्र
३ मंगल
४ बुध
५ गुरु
६ शुक्र
७ शनि
८ राहु
९ केतु
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आकार
मंडलाकार
चोरस
त्रिकोण
बाणाकार
परिशिष्ट नं. २- इ
ग्रहोनी स्थापनानो आकार तथा उपकरणः-गोठवण
दिशा
कापड पूर्वसन्मुख मध्यमां लाल पश्चिमसन्मुख अग्निकुणे धोळं
धनुषाकार
सूर्पाकार
ध्वजाकार
आलेख
रतांजली
सुखड
रतांजली
सुखड, केसर
पाटीनाआकारे गोरुचंदन
पंचखुण
सुखड कस्तुरी, चुवो कस्तुरी, चुत्रो यक्ष कदम
उत्तरसम्मुख दक्षिण दिशामां लाल दक्षिणसन्मुख ईशानकूणे
लीळु
उत्तर दिशामां पूर्वदिशामां
उत्तरसन्मुख
पश्चिम दिशामां
पूर्वसन्मुख पश्चिमसन्मुख दक्षिणसन्मुख नैर्ऋत्यकृणे दक्षिणसन्मुख वायव्यकूणे
पीलुं
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सफेद
कां
लाडु
घनादळनो ममरानो
छींट
फुल
लाल कणेर
चंद्रविकाशी
कुमुद वा मोगरो
गोळवाणीनो मगनो
चणानी दालनो
पीसेला चोखानो
गलीरंगजेवुं अडदमगनो साथै
अडदनो
जासुद
जुइ वा चमेली
अडद-मग चणाममरानो साथ
सूचना :- नवे य ग्रहो माटे-अधेलां, सोपारी, अक्षत, चंदन, धूप अने दक्षिणा ए नव नव लेवां.
चंपी
सेयंत्रानों
बावळनां
मचकुंद
पंचरंगी
॥२१७॥
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