Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
View full book text
________________
अञ्जन प्र. कल्प
॥३॥
है अने नरेन्द्रोथी पूजित तीर्थंकरपदने भोगवे छे; तेमज तेणे जिनेश्वरनी आज्ञा मानवापूर्वक पोतानो जन्म सार्थक करी का पोताना कुळने उज्ज्वल कयु छे. ॥ ५॥
जे माणस वीतराग परमात्मानी प्रतिमा करावे छे ते परलोकमां सुखकारक धर्मरत्न प्राप्त करे छे. ॥ ६॥ ७ ॥
जे माणस ऋषभदेवादि वर्तमान चोवीशीना कोई पण तीर्थकर परमात्मानी अंगुठा मात्र प्रमाणनी पण प्रतिमा भरावे छे, ते लावाकाळ सुधी ऊंचा प्रकारनां स्वर्गसुख भोगवी मोक्ष सुख मेळवे छे. ॥ ८ ॥ | मल्लिनाथ, नेमिनाथ अने महावीर स्वामी केवळ वैराग्य प्रेरक होबाथी चैत्यमा स्थापवा पण घरमा स्थापन करेला शुभोत्पादक नथी. ॥९॥ ___ साक्षी पाठः मल्लि-नेमि-वीरा, जिणभवणे सावएण पुज्जाई।
___ इगवीसं तित्थयरा, संतिगरा पूइया वंदे (गेहे) ॥१०॥ धर्म-कर्मना मर्मना जाणनाराओए मोक्षसुखमां कारण भूत, दर्शन-ज्ञान-चारित्रना निश्चय रूप अने शुक्लध्यान रूप | अग्निथी कर्मकाष्ठने बाळी नांखनार सर्व जिनेन्द्रोनां प्रतिष्ठा पूर्वक अभिषेक वगेरे तमाम कार्यों महोत्सव सहित करवा ते अभिषेकादि कार्यों बे प्रकारे छे--१-नित्य अने २-नैमित्तिक ॥ ११ ॥१२॥ १३ ॥
जिनेश्वरोतुं नित्यस्नात्र लोकोने परलोकमां हितकर छे अने नैमित्तिकस्नात्र आ लोक अने परलोकमां मुख
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
pujainelibrary.org