Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra  Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat

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Page 240
________________ अञ्जन प्र. कल्प ॥१९॥ ९-दो ८-ज्ञानपद:-छदव्यपज्जायगुणायरस्स: सया पयासी करणो धुरैस्स । मिच्छत्तअण्णाणतमोहरस्स. णमो णमो णाणदिवायरस्स ॥८॥ (उपजाति.) ही नमो नाणस्स' ए मंत्रथी ज्ञानपदनु पूजन करवू. वर्ण-उज्ज्वल-गुण-५।५१. निपद:-अणंतविण्णाणसुकारणस्स, अणंतसंसारविदारणस्स । अणंतकम्मावलिधंसणस्स; णमो णमो णिम्मलदंसणस्स ॥९॥ (उपेन्द्रवज्रा.) ____ॐ ह्रीँ नमो दंसणस्स' ए मंत्रथी दर्शनपदनुं पूजन करवू. वर्ण-उज्ज्वल-गुण-६७. १०-विनयपद:-आणंदियासेसजगज्जणस्स, कुंदिदुपादामलताचणस्स । सुधम्मजुत्तस्स दयासयस्स; णमो णमो श्रीविणयालयस्स ॥१०॥ (उपजाति.) 'ॐहीँ नमो विणयस्स' ए मंत्रथी विनयपदनुं पूजन कर. वर्ण-उज्ज्वल-गुण-५२. ११-चारित्रपद:-कम्मोधकतारदवाणलस्स; महोदयाणंदलया जलस्स । विण्णाणपंकेरुहकारणस्स; णमो चरित्तस्स गुणायरस्स ॥ ११ ॥ (उपजाति.) 'ॐ ही नमो चरित्तस्स' ए मंत्रथी चारित्रपदनुं पूजन करवू. वर्ण-उज्ज्वल-गुण-१७१७० १२-ब्रह्मचर्यपद:-सग्गापवग्गग्गमुहप्पयस्सः सुणिम्मलाणनगुणालयस्स । __ सबब्बयाभूसणभूसणस्स; णमो हि सीलस्स अदूसणस्स ॥१२॥ (उपजाति.) RSCHEIGHT CLICKSCREECHUGHUGASCAR ॥१९ ॥ Jain Education Lonal For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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